Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाया : ६६-७० ] विदुरो महाहियारो
[ १६१ अर्थ :पाँचवीं पृथिवीमें दोसौ पैसठ, छठीमें तिरेसठ और अन्तिम सातवीं पृथिवीमें मात्र पांच ही इन्द्रक और श्रेणीबद्ध बिल हैं, ऐसा जानना चाहिए । ६८।।
विशेषा:-( ५ ......... ..२, ९=४) + २-६ । ६४८=४८, (४८+५=५३)x५= २६५ पाँचवीं पृ० के इन्द्रक और श्रेणीबद्ध । ( ३ -- १-२)२= १ । (१४१=१)+१=२ । २४८- १६ । ( १६+५-२१)४३-६३ छठी पृथिवीके इन्द्रक और श्रेणीबद्ध बिलोंका प्रमाण । (१ – १-० ):-२८०, ( oxo ==0)+o = 0 1 0x4-0 | ( ०+५=५)x१=५ सातवीं पृथिवीके इन्द्रक और श्रेणीबद्ध बिलोंका प्रमाण ।
सम्मिलित प्रमाण निकालनेके लिए प्रादि चय एवं गच्छका प्रमाण पंचादी अट्ठ चयं उणवण्णा होंति गच्छ-परिमाणं ।
सन्याणं पुढवीणं सेढीद्धिदयाण 'इमं ॥६६॥ 'चय-हदमिट्ठाधिय-पदमेक्काधिय-इट्ठ-गुरिणय-यय-होणं ।
दुगुणिद-वदणेण जुई पद-बल-गुणिवम्मि होदि संकलिदं ॥७०॥ अर्थ :--सम्पूर्ण पृथिवियोंके इन्द्रक एवं श्रेणीबद्ध बिलोंके प्रमाणको निकालनेके लिए आदि पाँच, चय आठ और गच्छका प्रमाण उनचास है ॥६६॥
इष्टसे अधिक पदको चयसे मुरणा करके उसमेंसे, एक अधिक इष्टसे गुणित चयको घटा देनेपर जो शेष रहे उसमें दुगुने मुखको जोड़कर गच्छके अर्धभागसे गुणा करनेपर संकलित धन प्राप्त होता है ।।७॥
विशेषार्थ :-सातों पृथिवियोंके इन्द्रक और श्रेणीबद्धोंकी सामूहिक संख्या निकालने हेतु आदि अर्थात् मुख ५, चय ८ और गच्छ या पदका प्रमाण ४६ है। यहाँ पर इष्ट ७ है अतः इष्ट से अधिक पदको अर्थात् ( ४६+७)=५६ को (चय ) से गुणा करनेपर ( ५६४८)= ४४८ प्राप्त हुए, इसमेंसे एक अधिक इष्ट से गुरिणत चय अर्थात् (७ +१=८ )x८-६४ घटा देनेपर ( ४४८ – ६४ ) = ३८४ शेष रहे, इसमें दुगुने मुख ( ५४२)=१० को जोड़कर जो ३६४ प्राप्त हुए उसमें ३ का गुणा कर देनेपर ( 39Xx)-६६५३ सातों पृथिवियोंका संकलित धन अर्थात् इन्द्रक और श्रेणीवद्धोंका प्रमाण प्राप्त हुआ।
१. द. ब. इंदम। २. द. क. चम्पदमिद्वादियपदमेक्कादिय, ब. चयहमिद्रदिय पदेमक्कादिय ।