Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाथा : २७१ ] विदुनो महाहियारो
[ २३७ अर्थ :-सातवीं पृथिवीके अवधिस्थान इन्द्रकमें नारकियोंका उत्सेध पाँच सौ (५०० ) धनुष प्रमाण है ॥२७॥
श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक-बिलोंके नारकियोंका उत्सेध एवं रयणावीणं पक्कं इक्याण जो उदयो। सेडि-विसेडि-गदाणं पइण्णयाणं च सो च्चे ॥२७॥
!! इदि गणारयाण उच्छेहो समत्तो' ॥४।। अर्थ :-इसप्रकार रत्नप्रभादिक पृथिवियोंके प्रत्येक इन्द्रकर्मे शरीरका जो उत्सेध है, वही उत्सेध उन-उन पृथिवियोंके श्रेणीबद्ध और विश्रेणीगत प्रकीर्णक बिलोंमें स्थित नारकियोंके शरीरका भी जानना चाहिए ।।२७१।।
॥ इसप्रकार नारकियोंके शरीरका उत्सेध-प्रमाण समाप्त हुआ ॥४॥
नोट :-गाथा २१७, २२० से २२६, २३१ से २४१, २४३ से २५१, २५३ से २५६, २६१ से २६४ और २६६ से २६६ से सम्बन्धित मूल संदृष्टियोंका अर्थ निम्नांकित तालिका द्वारा दर्शाया गया है :
(तालिका अगले पृष्ठ पर देखिए]
१. द. समत्ता।