Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाथा : ३४६-३५ विदुओ महाहियारो
[ २५६ प्रत्येक पृथियीके पाहारकी गंध-शक्तिका प्रमाण घम्माए आहारो कोसस्सभंतरम्मि ठिद-जीवे । इह 'मारइ गंधेण सेसे कोसद्ध-बढिया सत्ती ॥३४६॥
1॥ १।३।२।३।३।। ४ ।। अर्थ :-धर्मा पृथिवीमें जो पाहार है, उसकी गंधसे यहाँ ( मध्यलोकमें ) पर एक कोसके भीतर स्थित जीव मर सकते हैं, इसके प्रागे शेष दूसरी आदि पृथिवियोंमें इसकी घातक शक्ति प्राधाप्राधा कोस और भी बढ़ती गई है ॥३४९।।
विशेषाय : प्रथम नरकके नारको जिस मिट्टीका प्रहार करते हैं वह मिट्टी अपनी दुर्गन्धसे मनुष्य क्षेत्रके एक कोसमें स्थित जीवोंको, द्वितीय नरकको मिट्टी १३ कोसमें, तृतीयको २ कोसमें, चतुर्थकी २६ कोसमें, पंचमकी ३ कोसमें, षष्ठकी ३३ कोसमें और सप्तम नरककी मिट्टी ४ कोसमें स्थित जीवोंको मार सकती है।
असुरकुमार-देवोंमें उत्पन्न होने के कारण पुग्वं बह-सुराऊ अणंतअणुबंधि-अण्णदर-उदया ।
पासिय-ति-रयण-भावा णर-तिरिया केइ असुर-सुरा॥३५०॥ मर्थ :--पूर्वमें देवायुका बंध करने वाले कोई-कोई मनुष्य और तिर्यंच अनन्तानुबन्धीमेंसे किसी एकका उदय आजानेसे रत्नत्रयके भावको नष्ट करके असुर-कुमार जातिके देव होते हैं ।।३५० ।।
___ असुरकुमार-देवोंकी जातियाँ एवं उनके कार्य सिकदाणणासिपत्ता* महबल-काला य साम-सबला' हि । रुहबरिसा विलसिद-णामो महरूद-खर-णामा ॥३५१॥
१. द. ब. मातहि । २. अंबे अंबरिसी चेव, सामे य सवलेपि य ।
रोद्दोबरुद्द काले य महाकालेत्ति प्रावरे ॥६॥ प्रसिपत्तं घणुकुभे वालुबेपरणीदि म । खरस्सरे महाघोंसे एवं पण्णरसाहिया ॥६६॥ सूत्रकृताग-नियुक्ति, प्रवचनसारोदार :- पृ. ३२१ ३. द.ब. क.ज. ठ. सवलं ।