Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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१६८ ]
तिलोय पण्णत्ती
[ गाथा ८६
२८ अवशेष रहे तथा इसका आधा १४४ हुए। इसका (१४४) वर्ग २०७३६ इसे (४४२०४ ४=-) १७६८० में मिला देनेपर ३८४१६ होते हैं । इस राशिका वर्गमूल १९६ आता है । इस वर्गमूलमैंसे पूर्वमूल अर्थात् १४४ घटा देनेपर ५२ शेष बचे । इसमें अर्ध-चय ( ४ ) का भाग देनेपर पदका प्रमाण १३ प्राप्त हो जाता है ।
यथा–{ v{{×४४२०)+(23) – ( २१२ – 01:
-
= / १७६८० + १४४२–१४४=: 1११gdxx
प्रमाण ।
- १३ पहली पृ० का पद
इस गाथाका सूत्र-
पद={ v(संकलित धन × चय) + (आदि - चय) - ( श्रादि-चय ) } : च्य
अहवा
-चम-हदं संकलिदं चय-दल-यवरगंतरस्स वग्ग- जुदं । मूलं पुरिमूलूणं चय- भजिवं होदि तं तु पदं ॥ ८६ ॥ श्रहवा
संदृष्टि-दु २ । वय ८ । दु-चय-हवं संकलिवं ४४२० । १६ । चयवल ४ | वदन २६२ । अंतरस्स २८८ | बग ३६२ । मूलं ३६२ पुरिमूल २८८ । ऊणं १०४ । चय भजिवं ४ | पदं १३ ।
अर्थ : अथवा - - दुगुने चयसे गुणित संकलित धनमें चयके अर्धभाग और मुखके अन्तर रूप संख्या वर्गको जोड़कर उसका वर्गमूल निकालने पर जो संख्या प्राप्त हो उसमेंसे पूर्व मूलको ( जिसके वर्गको संकलित धनमें जोड़ा था ) घटाकर शेषमें चयका भाग देनेपर विवक्षित पृथिवीके पदका प्रमाण निकलता है || ८६ ॥
विशेषार्थ :- दुगुणित चय ६४२-१६ इससे गुणित संकलित धन ४४२०x१६, चयका प्रभाग ४, मुख, २९२ मुख २१२ मेंसे ४ घटाने पर २८८ अवशेष रहे, इसका वर्ग ८२९४४ प्राप्त हुआ, इसमें १६ गुणित सङ्कलित धन ७०७२० जोड़ देनेपर १५३६६४ प्राप्त हुए और इसका वर्गमूल ३९२ श्राया । इस वर्गमूल मेंसे पूर्वमूल अर्थात् २८० घटानेपर १०४ अवशिष्ट रहे । इसमें चय ८ (आठ) का भाग देनेपर (208) १३ प्र० पृ० के पदका प्रमाण प्राप्त हुआ । यथा