Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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तिलोयपत्ती
उदाहरण :- अन्त ७ धनुष, ३ हाथ, ६ अंगुल ३ हाथ=२८१ ) ÷५
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अर्थात् ( ३११ हाथप्रमाण है ।
[ गाथा : २२०-२२३
यादि ३ हाथ; ७ ६०, ३ हा०, ६ अं = २ हाथ ई अंगुल हानि-वृद्धिका
हारिण चारण पमारणं घम्माए होंति दोष्णि हत्था य । अट्ठगुलाणि अंगुल - भागो 'दोहि वित्तो य ॥ २२० ॥
२ । ८ । भा३ ।
अर्थ :- धर्मां पृथिवी में इस हानि-वृद्धिका प्रमाण दो हाथ, आठ अंगुल और एक अंगुलका दूसरा ( ३ ) भाग है ॥२२० ॥
हानि
का प्रमाण २ हाथ, अंगुल प्रमारण है ।
एक्क· धणुमेवक - हत्थो सत्तरसंगुल-वलं च णिरयम्मि ।
इगि- दंडोतिय-हत्या' सत्तरसं अंगुलारिण रोरुपए ।।२२१ ।।
दं १, १, अं । दं १, २, अं १७ ।
अर्थ :- पहली पृथिवीके निरय नामक द्वितीय पटलमें एक धनुष एक हाथ और सत्तरह अंगुलके आधे अर्थात् साढ़े आठ अंगुल प्रमाण तथा रौरुक पटलमें एक धनुष, तीन हाथ और सत्तरह अंगुल प्रमाण शरीरकी ऊँचाई है ।।२२१||
दो दंडा वो हत्या अंतम्मि विवड्ढमंगुलं होदि । जबसंते दंड-तियं दहंगुलाणि च उच्छे हो ॥ २२२ ॥
दं २, २, ३ । दं ३, अंगु १० ।
:
अर्थ :- भ्रान्त पटल में दो धनुष, दो हाथ और डेढ़ अंगुल तथा उद्भ्रान्त पटलमें तीन धनुष एवं दस अंगुल प्रमाण शरीरका उत्सेध है ||२२२||
लिय बंडा दो हत्था अट्ठारह अंगुलाणि पश्यद्ध । संभंत - णाम- इंदय उच्छे हो पढम-पुढथीए
दं ३, ह २, अं १८ भा३ ।
१. द. दोहि बित्यो य । २. द. ज. क. उ. हत्थो ।
॥२२३॥
३ द. सम्वस्थ, ब क ज ठ सम्वत्थ ।