Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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तिलोयपत्ती
[ गाथा : १५८
इन्द्रक बिलोंका बाहल्य
श्रेणीबद्धोंका बाहल्य
प्रकीर्णकों का बाहल्य
पहली पृ०.१ + १ = २,२४३-६,६६=१ कोस २४४=८,८:६ = १ कोस२४७=१४, १४
|-६-२, कोस दूसरी पृ०-२+१-३,३४३ - ६,६-:-६=१६, ३४४=१२,१२:६-२, ३४७-२१, २२
६-३६कोस तीसरीपृ०-३+१= ४,४४३-१२,१२:६= २.४४४=१६,१६.६=२ ४x७=२८, २९
+६=४३ कोस चौथी पृ०.-४+१-५,५४ ३ ८ १५,१५, ६-२३,५४४=२०,२०२६-३ ५.४७=३५, ३५
:६- कोस पाँचवीं,,-५+१= ६,६४३ = १८,१८:६-३, ६x४=२४,२४ : ६-४,६४७-४२, ४२
। ६ = ७ कोस | छछी पृ०-६ +१-७,७४३=२१,२१+६=३६, ७४४ =२८,२१:६= ४३,७४७ = ४६, ४६/
:.६= कोस! सातवीं प०-७+१=८,८४३-२४,२४:६४८४४-३२,३२, ६-५, प्रकीर्णकों का
। अभाव है।
अहवा
प्रादी छ अट्ट चोद्दस तद्दल-वढिय जाब सत्त-खिदी।
कोसच्छ-हिवे इंदय-सेढी-पइण्णयाण बहलत्तं ॥१५॥ इ० १ । ३ । २।५ । ३ ३ ३ । ४ । सेढी ।। २ । । । ४ । ३ । ।
प्र०।11। । ७ । १९ । मर्थ : अथवा–यहाँ प्रादिका प्रमाण क्रमशः छह, पाठ और चौदह है। इसमें दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी पर्यन्त उत्तरोत्तर इसी आदिके अर्ध भागको जोड़कर प्राप्त संख्यामें छह कोस का भाग देनेपर क्रमश: विवक्षित पृथिवीके इन्द्रक, श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक बिलोंका बाहल्य निकल आता है ।।१५।।
विशेषार्थ :-पहली पृथिवी के आदि (मुख) इन्द्रक बिलोंका बाहल्य प्राप्त करनेके लिए ६, श्रेणीबद्ध बिलोंके लिए ८ और प्रकीर्णक बिलोंका बाहल्य प्राप्त करने हेतु १४ है। इसमें दूसरी पृथिवीसे सातवीं पृथिवी पर्यन्त उत्तरोत्तर इसी प्रादि (मुख) के अर्ध-भागको जोड़कर जो लब्ध प्राप्त हो उसमें ६ का भाग देनेपर क्रमशः इन्द्रक, श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक बिलोंका बाहल्य प्राप्त हो जाता है । यथा