Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाया : १३७-१३९ ]
विदुनो महाहियारो
/ १८७
अर्थ : तीसरी पृथिवीमें निदाघ नामक पंचम इन्द्रकका विस्तार उन्नीस लाख, तैंतीस हजार, तीनसौ तैंतीस योजन और योजनके तृतीय-भाग प्रमाण है ॥। १३६ ।।
९१६६६६= १९३३३३३ योजन विस्तार निदाघ नामक
खार्थ: २०२५०००
पंचम इन्द्रक बिलका है ।
प्रद्वारस- लक्खाणि इगिदाल - सहस्स-छ-सय-छासट्ठी । दोणि कला तदियाए भूए पज्जलिव- वित्थारो ॥१३७॥
१८४१६६६३ ।
अर्थ :- तीसरी पृथिवी में प्रज्वलित नामक छठे इन्द्रकका विस्तार अठारह लाख, इकतालीस हजार, छह सौ छ्यासठ योजन और एक योजनके तीन भागों में से दो भाग प्रमाण है ।। १३७ ।।
विशेषार्थ :- १९३३३३३
नामक छठे इन्द्रक बिलका है ।
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- ९१६६६३ = १८४१६६६ योजन विस्तार प्रज्वलित
सतरसं लक्खाणि पण्णास सहस्स जोयरगाणि च ।
उज्ञ्जलि - इंदयस्स व वासो वसुहाए तबियाए ।। १३८ ।।
१७५००००।
अर्थ :- तीसरी पृथिवीमें उज्ज्वलित नामक सातवें इन्द्रकका विस्तार सत्तरह लाख पचास हजार योजन प्रमारण है ।। १३८ ।।
विशेषार्थ
:- ९८४१६६६ - ६१६६६३ - १७५०००० योजन विस्तार उज्ज्वलित नामक सातवें इन्द्रक बिलका है ।
सोलस जोय रग- लक्खा डवरण सहस्स-ति-सय-तेत्तीसा । एक्क - कला संजलिदिवस्स' वित्थारो ॥१३६॥
तदिधाए
१६५८३३३३ ।
अयं : तीसरी - भूमिमें संज्वलित नामक आठवें इन्द्रकका विस्तार सोलह लाख भट्ठावन हजार तीन सौ तैंतीस योजन और एक योजनका तीसरा भाग है ।। १३९ ।।
१. द. व संपज्ञ्जलिस्स ।