Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाथा : १८८-१८६] पढमो महाहियारो
[ ५७ अर्थ :-..-छठी पृथिवी तक जो बाह्य क्षेत्रका घनफल एक बदे छह (२) घनराजू होता है, उसे उपर्युक्त दोनों क्षेत्रोंके जोड़ रूप घनफल ( धनराज ) में में घटा दनपर शेष एक विभाग (3) सहित छह घनराजू प्रमाण अभ्यन्तर क्षेत्रका घनफल समझना चाहिए ।।१८७॥
{"+२ )x.x७= घन रा० बाह्यक्षेत्रका धनफल ।
३....-१ घनराजू अभ्यन्तर क्षेत्रका घनफल ।
विशेषार्थ : छठी पृथिवी पर छ ज झ में छ बाह्य और सभ्यन्तर क्षेत्रसे मिश्रित क्षेत्रका घनफल इसप्रकार है:
झ में और में मैं = है, अतः झ में - (+)ई होता है। और छ छ- है, इन दोनों भुजानोंका योग (+)="राजू हुप्रा । इसमें पूर्वोक्त क्रिया करने पर (3xxx 1) धनराजू धनफल प्राप्त होता है । इसमेंसे बाह्म त्रिकोण क्षेत्र ज झ झ का घनफल (3xx
ऊँ०४७) वनराजू घटा देने पर छ ज में में छे अभ्यन्तर क्षेत्रका धनफल (२३-1)= अर्थात् ६१ घनराजू प्राप्त होता है।
प्राहुट्ठ रज्जु-घणं घूम-पहाए समासमुट्ठि। पंकाए चरिमंते इगि-रज्जु-घणा ति-भागूरणं ॥१८॥
१३४३ । ३।३४३३।
रज्जु-घरणा सप्तच्चिय छब्भागूणा चउत्थ-पुढवीए । अभंतरम्मि भागे खेत-फलस्स-प्पमाणमिवं ॥१९॥
अर्थ :-धूमप्रभा पर्यन्त घनफलका जोड़ साढ़े तीन घनराजू बतलाया गया है, और पंकप्रभाके अन्तिम भागतक एक विभाग (3) कम एक धनराजू प्रमाण घनफल है ।।१८।।
[(3+1)२४ १४७ ] घन रा०; (२) xx७=१ घ० रा० ब्राह्मक्षेत्रका घनफल ।
पर्थ:- -चौथी पृथिवी पर्यन्त अभ्यन्तर भागमें घनफलका प्रमाण एक बटे छह (1) कम सात घनराज है ॥१८६।।