Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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मो महाहियारो
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अर्थ : – समचतुरस्र क्षेत्रवाले लोकके भुजा, कोटि एवं वेध ये प्रत्येक एक-एक श्रेणि ( - ) प्रमाण वाले हैं जिससे ( लोक का ) घनफल घनश्रेणि ( = ) अर्थात् ३४३ घनराजू प्रमाण होता है । इसे दो स्थानों में स्थापित करना चाहिए ।। २१८ ||
गाथा : २१८-२२० ]
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( इसके पश्चात् प्रथम जगह स्थापित ) श्रेणिके घन ( = ) को ७० से भाजित करने पर एक जबक्षेत्रका घनफल प्राप्त होता है और दूसरी जगह स्थापित लोक [ श्रेणिघन ( 5 ) ] को ७० से भाजितकर लब्धराशिको २५ से गुरिणत करने पर यवमुरज क्षेत्रमें यवक्षेत्रका घनफल = २५ अथवा = ५ प्राप्त होता है ।। २१९ ।।
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नौसे गुणित लोक में चौदहका भाग देनेपर मुरजक्षेत्रका घनफल आता है। इन दोनों के घनफलको जोड़ने से जगच्छ पीके घनरूप सम्पूर्ण यवमुरज क्षेत्रका घनफल होता है ।। २२० ।
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विशेषार्थ :- लोक अर्थात् ३४३ घनराजूको यबमुरजकी आकृतिमें लाने के लिए लोककी लम्बाई ( ऊँचाई ) १४ राजू, भूमि ६ राजू, मध्यम व्यास ३३ राजू और मुख एक राजू मानना होगा, क्योंकि यहां लोककी प्राकृतिसे प्रयोजन नहीं है, उसके धनफलसे प्रयोजन है । यथा-
यवमुरजाकृति
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