Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाथा : २७१-२७५ ]
पढमो महाहियारो __ लोकको परिवेष्टित करनेवाली बायुका स्वरूप गोमुत्त-मुग्ग-वण्णा 'घणोदधी तह घरणाणिलो वाऊ । तणु-वादी बहु-वण्णो रक्खस्स तयं व वलय-तियं ॥२७१।। पढमो लोयाधारो घणोवही इह घणाणिलो तत्तो।।
तप्परदो तणुवादो अंतम्मि णहं णिग्राधारं ॥२७२।। अर्थ :- गोमूत्रके सदृश वर्णवाला घनोदधि, मूगके सदृश वर्णबाला घनवात तथा अनेक वर्णवाला तनुवात इसप्रकारके ये तीनों वातवलय वृक्षकी त्वचाके सदृश ( लोकको घेरे हुए ) हैं । इनमें से प्रथम घनोदधिवातवलय लोकका आधारभूत है । उसके पश्चात् धनवातवलय, उसके पश्चात् तनुवातवलय और फिर अन्तमें निजाधार अाकाश है ॥२७१-२७२।।
वातवलयोंके बाल्य (मोटाई) का प्रमाण जोयण-चीस-सहस्सा बहलं तम्मारुवाण पत्तक्कं । अट्ठ-खिवीणं हेतु लोप-तले उवरि जाव इगि-रज्जू ॥२७३॥
२०००० । २०००० १ २००००। अर्थ :- पाठ पृथ्वियोंके नीचे, लोकके तल-भागमें एवं एक राजूकी ऊँचाई तक उन वायुमण्डलों से प्रत्येकको मोटाई बीस हजार योजन प्रमाण है ।।२७३।।।
विशेषार्थ :- पाठों भूमियोंके नीचे, लोकाकाशके अधोभागमें एवं दोनों पार्श्वभागोंमें नीचेसे एक राजू ऊँचाई पर्यन्त तीनों वातवलय बीस-बीस हजार योजन मोटे हैं ।
सग-परण-चउ-जोयरणयं 'ससम-णारयम्मि प्रहवि-पराधोए । पंच-चउ-तिय-पमाणं तिरीय-खेत्तस्य पणिधीए ॥२७४।।
।७।५ । ४ 1 ५ । ४ । ३ । सग-पंच-चउ-समारणा परिणधीए होंति बम्ह-कप्पस्स । परण-चउ-तिय-जोयणया उरिम-लोयस्स अंतम्मि ॥२७॥
।७।५।४।५।४ । ३ ।
२. द. ज. सत्तमाय मि, व, सत्तमसारयम्मि ।
३. द. पणदीए,
१. द. जे. ८. घणदधि । ब, परणधीए।