Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाथा : २८५ ] पढमो महाहियारो
[ १२७ विशेषाय :-१. लोकके नीचे तीनों-पवनोंसे मवरुद्ध क्षेत्रके घनफल
२. लोकके एक राजू ऊपर पूर्व-पश्चिम में अवरुद्ध क्षेत्र के एनफल, ३. लोकके एक राजू ऊपर दक्षिणोत्तरमें अवरुद्ध क्षेत्रके घनफल ४. सप्तमपृथिबीसे सिद्धलोक पर्यन्त अवरुद्ध क्षेत्रके घनफल, ५. सप्तमपृथिवीसे मध्यलोक पर्यन्त दक्षिणोत्तरमें अवरुद्ध क्षेत्रके घनफल, ६. ऊर्ध्वलोकके अबरुद्ध क्षेत्रके घनफलको और ७. लोक के अग्रभागपर
वातवलयोंसे अवरुद्ध क्षेत्रके घनफलको एकत्र करनेपर योग इसप्रकार
होगा :जगत्प्रतर अथवा ४६४ 31989900+ जगत्प्रतर या ४६x.se+जगत्प्रतर या ४६x +जगत्प्रतर या ४६x +जगत्प्रतर या ४६४१। इनको जोड़ने की प्रक्रिया
जगत्प्रत र x 3198690 +8 + ++ R =जगत्प्रतर ४१०२३३६०००००+५७०७५२०+१३४४००० + १३१७१२० + १४८४७
१०६७६० = जगत्प्रतरx." अथवा = १०३४ . पवनोंसे रुद्ध समस्त क्षेत्रका धनफल प्राप्त हुना।
पृथिवियों के नीचे पवनसे रुद्ध क्षेत्रोंका घनफल पुणो अट्टण्हं पुढवीणं हेट्ठिम-भागावरुद्ध-बाद-खेत-घनफलं वत्ताइस्सामो
तत्थ पढम-पुढवीए हेछिम-भागावरद्ध-बाय-खेत्त-घणफलं एक-रज्जु-विक्खंभसत्त-रज्जु-दोहा सटि-जोयण-सहस्स-बाहरूलं एसा अप्पणो बाहल्लस्स सत्तम-भाग-बाहरुलं जगपवरं होदि । ६०००० ।
प्रर्थ :--इसके बाद पाठों पृथिबियोंके अधस्तनभागमें वायुसे अवरुद्ध क्षेत्रका घनफल कहले हैं---
इन बाठों पृथिवियों से प्रथम पृथिवीके प्रधस्तनभागमें अवरुन वायुकें क्षेत्रका धनफल कहते हैं-एक राजू विष्कम्भ, सात राजू लम्बाई और साठ हजार योजन बाहल्लवाला प्रथम पृथिवीका