Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाया : १६-१६ ] विदुओ महाहियारो
[ १४३ अन्य १४ पुथियियोंके नाम एवं उनका बाहल्य तण्णामा वेरुलियं लोहिययंक' असारगल्लं च । गोमेज्जयं पवालं जोदिरसं अंजणं णाम ॥१६॥ अंजणमूलं अंक फलिहचंदणं च 'बच्चगयं ।
बउलं सेला' एका पत्त व इगि-सहस्स-बहलाई ॥१७॥ अर्थ :- वैडूर्य, लोहितांक ( लोहिताक्ष ), प्रसारगल्ल ( मसारकल्पा), गोमेदक, प्रवाल, ज्योतिरस, अंजन, अंजनमूल, अंक, स्फटिक, चन्दन, बर्चगत ( सर्वार्थका ), बकुल पोर शैला ये उन उपयुक्त चौदह पृथिवियों के नाम हैं। इनमेंसे प्रत्येककी मोटाई एक-एक हजार योजन है ।।१६-१७॥
सोलहवीं पृथिवीका नाम, स्वरूप एवं बाहल्य ताण खिदोणं हेवा पासाणं णाम 'रयण-सेल-समा।
जोयण-सहस्स-बहलं वेत्तासरण-सपिगहाउ* संठाम्रो ॥१८॥
अर्थ :-उन ( १५ ) पृथिवियोंके नीचे पाषाण नामकी एक ( सोलहवीं ) पृथिवी है, जो रत्नपाषाण सदृश है । इसकी मोटाई भी एक हजार योजन प्रमाण है । ये सब पृथिवियाँ बेत्रासनके सदृश स्थित हैं ॥१८॥
पंकभाग एवं अन्बहुलभागका स्वरूप पंकाजिरो य दोसदि एवं पंक-बहुल-भागो वि।
अप्पबहुलो वि भागो सलिल-सरूवस्सयो होदि ॥१६॥ अर्थ :-इसीप्रकार पंकबहुलभाग भी पंकसे परिपूर्ण देखा जाता है। उसीप्रकार अब्बहुलभाग जलस्वरूपके प्राश्रयसे है ॥१६॥
१. [ लोहिययक्खं मसार ]। २. 8. चचब्बगयं । ३. ६. क. ब. सेलं इय एदाई। ४. ब. क. ४. रयणसोलसम । ५ द. न. सण्णि हो। ६. क. ठ. संबो। ७. द. क. उ. दिसदि एदा एवं, ब. दिसदि एवं।