Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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तिलोय पण्णत्ती
[ गाथा ५१-५४
अर्थ :- अंजना पृथिवीमें धार इन्द्रकके समीप प्रथम निसृष्ट, द्वितीय निरोध, तृतीय प्रतिनिसृष्ट और चतुर्थ महानिरोध ये चार श्रेणीबद्ध बिल हैं || ५० ॥
अरिष्टा पृथिवीके प्रथम श्रेणीबद्ध बिलोंके नाम
तमकंदए' णिरुद्धो विमद्दणो अदि- णिरुद्ध-णामो य । तुरिमो महाविमद्दणणामो पुव्वादिसु दिसासु ॥ ५१ ॥
अर्थ :- तमक इन्द्रक बिलके समीप निरुद्ध, विमर्दन, प्रतिनिरुद्ध और चतुर्थ महामर्दन नामक चार श्रेणीबद्ध बिल पूर्वादिक चारों दिशाओं में विद्यमान है ।। ५१ ।।
मघवी पृथिवीके प्रथम श्रेणीबद्ध बिलोंके नाम
हिम-इंदयहि होंति हु णीला पंका य तह य महणीला । महपंका पुग्वादिसु सेठीबद्धा इमे चउरो ॥५२॥
अर्थ :- हिम इन्द्रक बिलके समीप नीला, पंका, महानीला और महापंका, ये चार श्रेणीबद्ध बिल क्रमशः पूर्वादिक दिशाओं में स्थित हैं ।। ५२ ।।
Hraat - पृथिवीके प्रथम श्रेणीबद्ध बिलोंके नाम
कालो रोरव-रणामो महकालो पुव्व-पहुवि - दिव्भाए । महरोरथो चउत्थो अवधी- ठाणस्स चिट्ठ ेदि ॥ ५३ ॥
अर्थ :- अवधिस्थान इन्द्रक बिलके समीप पूर्वादिक चारों दिशाओं में काल, रौरव महाकाल और चतुर्थ महारौरव ये चार श्रेणीबद्ध विल हैं || ५३ ||
अन्य विलोंके नामोंके नष्ट होनेकी सूचना
प्रवसेस - इंदयाणं पुण्वादि- दिसासु सेढिबद्धारणं ।
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पट्टाई णामाई पढमाणं बिदिय पहुदि सेठीणं ॥ ५४ ॥
अयं :- शेष द्वितीयादिक इन्द्रकविलोंके समीप पूर्वादिक दिशाओं में स्थित श्रेणीबद्ध बिलोंके नाम घोर पहले इन्द्रकबिलोंके समीप स्थित द्वितीयादिक श्रेणीबद्ध बिलोंके नाम नष्ट हो गये हैं ।। ५४ ।।
१. द. व. रु. तमकडये । २. द. ब. क. ठ. यदिगिषुणामो । ३. द. ब. क. ठ. साई ।