Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाथा : २८० ]
पढमो महाहियारो विशेषार्थ : सातवीं पृथिवीके समीप तीनों-पवनोंका बाहल्य ४ अर्थात् १६ योजन है ।
छठवीं पृथिवीके समीप तीनों-पवनोंका बाहल्य " अर्थात् १५३ यो० है । पांचवीं , , चौथी ,
, , १४ ,, ,, तीसरी .. .. ..
॥ १३ , , दूसरी . , , , , १२ , ,, पहली , , , , , १२ ॥ ..
बातमण्डलकी मोटाई प्राप्त करने का विधान उड्ढ-जगे खलु वड्ढी इगि-सेढी-भजिव-अट्ठ-जोयणया' । एवं इच्छप्पहदं सोहिय मेलिज्ज भूमि-मुहे ॥२०॥
अर्थ :-ऊर्बलोकमें निश्चयसे एक जगच्छेणीसे भाजित आठ योजन प्रमाण वृद्धि है। इस वृद्धि प्रमाणको इच्छा राशिसे गुरिणत करनेपर जो राशि उत्पन्न हो, उसे भूमिमेंसे कम कर देना चाहिए और मुख में मिला देना चाहिए। ( ऐसा करनेसे ऊर्ध्वलोकमें अभीष्ट स्थानके वायुमण्डलोंकी मोटाईका प्रमाण निकल पाता है ) ॥२८॥
विशेषार्थ :-ऊर्ध्वलोकमें वृद्धिका प्रमाण योजन है। इसे इच्छा अर्थात् अपनी अपनी ऊँचाईसे गुरिणतकर, लब्ध राशिको भूमि मेंसे घटाने और मुखमें जोड़ देनेसे इच्छित स्थानके वायुमण्डलकी मोटाईका प्रमाण निकल आता है । यथा--जब ३३ राजूपर ४ राजूकी वृद्धि है, तब १ राजपर राजूकी वृद्धि प्राप्त हुई । यहाँ ब्रह्मलोकके समीप बायु १६ योजन मोटी है । सानत्कुमारमाहेन्द्रके समीप वायुकी मोटाई प्राप्त करना है । यहाँ १६ योजन भूमि है । यह युगल ब्रह्मलोकसे । राजू नीचे है, यहाँ ३ राजू इच्छा राशि है, अतः वृद्धिके प्रमाण राजूमें इच्छा राशि ३ राजुका मुगा कर, गुणनफल (x ) को १६ राजू भूमिमैसे घटानेपर ( १६ -1)-१५१ राजू मोटाई प्राप्त होती है । मुखकी अपेक्षा दूसरे युगलकी ऊँचाई ३ राजू है, अत: (x)-४ तथा १२+४=१५३ राजू प्राप्त हुए ।
- . . ... -.... . . ... --.--....१. द. ज. छ. जोयगणसया।
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