Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाथा : १६२ ] पढ़मो महाहियारो
[ ५६ अर्थ :-उपर्युक्त घनफलको दुगुना करनेपर दोनों (पूर्व-पश्चिम) तरफका कुल घनफल वेसठ धनराजू प्रमाण होता है । इसमें सब अर्थात् पूर्ण एक राजू प्रमाण विस्तार वाले समस्त (१६) क्षेत्रोंका घनफल जो एक सौ तैंतीस घनराजू है, उसे जोड़ देनेपर चार कम दो सौ अर्थात् एकसौ छयानवै घनराजू प्रमाण कुल प्रधोलोकका घनफल होता है ।।१६१||
६३ + १३३ = १६६ घनराजू । विशेषार्य :-तीसरी पृथिवीपर ख ग गे खे क्षेत्रका घनफल----भुजा ग गें= +3, ख खे प्रतिभुजा तथा घनफल-3x३४१४७= धनराजू घनफल प्राप्त होता है।
दूसरी पृथिवीपर क ख खे एक त्रिकोण है। इसमें प्रतिभुजाका अभाव है। भुजा ख खे तथा घनफल xzx१४७= अर्थात् १३ घनराजू घनफल प्राप्त होता है ।
इन सब घनफलोंको जोड़कर दोनों प्रोरका घनफल प्राप्त करनेके लिए उसे दुगुना करना चाहिए । यथा -
३+५+ + +: + + +३ = ३३ + १५+ १ + ३८ + २१+४+४१+२७ +६=4Ex- 3१८ = ६३ घनराजू
अर्थात् दोनों पार्श्वभागोंमें बनने वाले सम्पूर्ण विषम चतुर्भुजों और त्रिकोणों का घनफल ६३ धनराजू प्रमाण है । इसमें एक राजू ऊँचे, एक राजू चौड़े और सात राजू मोटे १६ क्षेत्रोंका घनफल=(१९x१४ १४७) = १३३ धनराजू और जोड़ देनेपर अधोलोकका सम्पूर्ण घनफल (१३३ + ६३)-१६६ घनराजू प्राप्त हो जाता है।
ऊर्ध्वलोकके मुख तथा भूमिका विस्तार एवं ऊँचाई एक्कक्क-रज्जु-मेत्ता उवरिम-लोयस्स होति मुह-वासा । हेट्ठोवरि भू-वासा पण रज्जू सेटि-अद्धमुच्छेहो ॥१६२॥
छ । ७ । भु । ७५ । । । अर्थ :-ऊर्ध्वलोकके अधो और ऊर्ध्व मुखका विस्तार एक-एक राजू , भूमिका विस्तार पांच राजू और ऊँचाई ( मुखसे भूमि तक ) जगन्छणीके अर्धभाग अर्थात् साढ़े तीन राजू-मात्र है ।।१६२॥