Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा १६७ - १६८
अर्थ :- लोकको चारसे गुणितकर उसमें सातका भाग देनेपर अधोलोकके घनफलका प्रमाण निकलता है और सम्पूर्ण लोकको दो से गुणितकर प्राप्त गुणनफलमें सातका भाग देने पर अधोलोक सम्बन्धी या क्षेत्रका घनफल होता है ॥ १६६ ॥
४४ ]
विशेषार्थ :- लोकका प्रमाण ३४३ घनराजू है, अतः ३४३x४ - १३७२, १३७२÷७ १९६ घनराजू अधोलोकका घनफल है ।
३४३x२=६८६, ६८६÷७ १८ घनराजू अर्ध अधोलोकका घनफल हैं । धोलोक समालीका घनफल
छेत्तणं तस गालि अण्णत्थं ठाविण विवफलं । श्रासोज्ज तप्पमारणं जरगवण्णेहि वित्त-लो समं ॥१६७॥
अर्थ :- अधोलोक मेरो त्रसनालीको छेदकर और उसे अन्यत्र रखकर उसका धनफल निकालना चाहिए | इस घनफलका प्रमारण, लोकके प्रमाणमें उनचासका भाग देनेपर जो लब्ध प्रावे उतना होता है || १६७ ॥
विशेषार्थ :--- श्रधोलोकमें असनाली एक राजू चौड़ी, एक राजू मोटी और सात राजू ऊँची है, अतः १x१७ = ७ घनराजू घनफल प्राप्त हुआ जो ३४३ ÷ ४६ = ७ धनराजूके बराबर है ।
सनालीसे रहित और उससे सहित अधोलोकका घनफल
सगवीस-गुरिणव- लोओ उणवण्ण-हिदो अ सेस-खिदि-संखा ।
तस खित्ते सम्मिलिदे च-गुणिदो सग-हिदो लोश्रो ॥ १६८ ॥
१. द..
प्रथं :- लोकको सत्ताईसमे गुरणाकर उसमें उनचासका भाग देनेपर जो लब्ध प्रावे उतना त्रसनालीको छोड़ शेष अधोलोकका घनफल समझना चाहिए और लोक प्रमाणको चारसे गुणाकर
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