Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाथा : १५० ]
पढमो महाहियारों पूर्व-पश्चिमसे अधोलोककी ऊँचाई प्राप्त करनेका विधान एवं उसकी प्राकृति
उदनो हवेदि पुन्यावरेहि लोयंत-उभय-पासेसु । ति-नु-इगि-रज्जु-पवेसे सेढी दु-ति-'भाग-तिद-सेढोरो ॥१०॥
अर्थ :-पूर्व और पश्चिमसे लोकके अन्तके दोनों पार्श्वभागोंमें तीन, दो और एक राजू प्रवेश करनेपर ऊँचाई क्रमशः एक जगच्छ्रणी, श्रेणीके तीन भागोंमसे दो-भाग और श्रेणीके तीन भागोंमेंसे एक भाग मात्र है ।।१८०।।
विशेषार्थ :-पूर्व दिशा सम्बन्धी लोकके अन्तिम छोरसे पश्चिमकी अोर ३ राजू जाकर यदि उस स्थानसे लोककी ऊँचाई मापी जाय तो ऊँचाइयां क्रमश: जगच्छणी प्रमाण अर्थात् ७ राजू, दो राजू जाकर मापी जाय तो राजू और यदि एक राजू जाकर मापी जाय तो राजू प्राप्त होगी।
पश्चिम दिशा सम्बन्धी लोकान्तसे पूर्वकी ओर चलने परभी लोककी यही ऊँचाइयां प्राप्त
होंगी।
शंका :-दो राज आगे जाकर लोककी ऊँचाई १४ राजू प्राप्त होती है यह कैसे जाना
जाय ?
१. [ दुतिभागनिदियसेटीग्रो ] । २. क. प्रति से ।