Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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गाथा : ७५-८० ]
पढमो महाहियारो अण्णेहि अणंतेहिं गुणेहि जुत्तो विसुद्ध-चारित्तो ।
भव-भय-भंजण-दच्छो महवीरो अस्थ-कत्तारो ।।७५॥ अर्थ :-इसके अतिरिक्त और भी अनन्तगुरणोंसे युक्त, विशुद्ध चारित्रके धारक तथा संसारके भयको नष्ट करने में दक्ष श्रीमहावीर प्रभु ( भावकी अपेक्षा ) अर्थ-
कर्ता हैं ।।७५।। गौतम-गणधर द्वारा श्रुत-रचना महवीर-भासियत्थो तस्सि खेत्तम्मि तत्थ काले य । खायोवसम-विवढिद-चउरमल'-मईहि पुण्णण ॥७६॥ लोयालोयाण तहा जीवाजीवाण विविह-विसयेसु। संदेह-पासणत्यं उवगद-सिरि-वीर-चलणमूलेण ॥७७।। विमले गोदम-गोसे जादेणं "इंदभूदि-णामेणं । चउ-बेव-पारगेणं सिस्सेरण' विसुद्ध-सोलेणं ॥७८।। भाव-सुदं पज्जाएहि परिणयमयिणा' अ बारसंगाणं ।
चोइस पुब्बाण तहा एक्क-मुहुत्तेण घिरचणा विहिदा ॥७६ ।। अर्थ :- भगवान महावीरके द्वारा उपदिष्ट पदार्थस्वरूप, उसी क्षेत्र और उसीकालमें, ज्ञानावराके विशेष क्षयोपशमसे वृद्धिको प्राप्त निर्मल चार बुद्धियों ( कोष्ठ, बीज, संभिन्न-श्रोत और पदानुसारी ) से परिपूर्ण, लोक-अलोक पीर जीवाजीवादि विविध विषयों में उत्पन्न हुए सन्देहको नष्ट करनेके लिए श्रीवीर भगवान्के चरण-मूलकी शरण में आये हुए, निर्मल गौतमगोत्रमें उत्पन्न हुए, चारों वेदोंमें पारंगत, विशुद्ध शीलके धारक, भावश्रुतरूप पर्यायसे बुद्धिकी परिपक्वताको प्राप्त, ऐसे इन्द्रभूति नामक शिष्य अर्थात् गौतम गणधर द्वारा एक मुहूर्त में बारह अंग और चौदहपूर्वोकी रचना रूपसे श्रुत गुथित किया गया 11७६-७९।।
कर्नाके तीन भेद इय मूल-तंत-कत्ता सिरि-वीरो इंदभूदि-विष्प-वरो । उवतंते कत्तारो अणुतते सेस-आइरिया ।।८।।
१. ब. चउउर", क. बउउर । २. भ. यंदभूदि', क. इदिभूदि। ३. ब. मिस्सेरण, क. मिशेण । ४, [परिणदमहणा य] क. मयेण एयार ।