Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
View full book text
________________
२८ ].
तिलोयपणती
[ गाथा : १२३-१२६ उपर्युक्त संदृष्टिका गुणनफल 'अट्ठारस ठाणेसुसुण्णाणि दो णयेषक दो एक्को। पण-रणव-चउक्क-सत्ता सग-ससा एक्क-तिय-सुण्णा ॥१२३॥ दो अट्ठ सुण्ण-तिन-गह-"तिय-छक्का दोणि-पण-चउक्कारिण ।
"तिय एक्क यानिगि अंग कमेएर गल्लोगल्ल १२४॥ ४१३४५२६३०३०८२०३१७७७४६५१२१६२०००००००००००००००००० ।
अर्थ :-अन्तके स्थानोंमें १८ शून्य, दो, नौ, एक, दो, एक, पाँच, नौ, चार, सात, सात, सात, एक, तीन, शून्य, दो, पाठ, शुन्य, तीन, शून्य, तीन, छह, दो, पाँच, चार, तीन, एक और चार ये अमसे पल्यरोमके अंक हैं ।।१२३-१२४।।
व्यवहार पल्यका लक्षण
एवकेक रोमग्गं वस्स-सदे फेखिदम्हि सो पल्लो । रित्तो होदि स कालो उद्धार सिमित-ववहारो ॥१२५॥
॥ ववहार-पल्लं ।। अर्थ :-- सौ-सौ वर्षमें एक-एक रोम-खण्डके निकालनेपर जितने समयमें वह गड्ढा खाली होता है, उतने कालको व्यवहार-पल्योपम कहते हैं। वह व्यवहार पल्य उद्धार-पल्यका निमित्त है ॥१२॥
॥ व्यबहार-पल्यका कथन समाप्त हुा ।।
उद्धार पल्यका प्रमाण बवहार-रोम-रासि पत्तेक्कमसंख-कोडि-वस्साणं । समय-समं छेत्तूणं विदिए पल्लम्हि भरिवम्हि ॥१२६॥
१.८ अट्ठरसंताणे। २. द. दोणविक्कं । ३. द. तियच्छचपदोगिणपणपणिति, क. तियच्छचउदोण्णिपणच मिति । ४. द. ए एक्वा ।। .