Book Title: Tiloypannatti Part 1
Author(s): Vrushabhacharya, Chetanprakash Patni
Publisher: Bharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
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भीतरी दोघं दोनों प्रवण क्षेत्रों का घनफल=१३७, घनराजू भीतरी लघु दोनों प्रबरण क्षेत्रों का धनफल=५८३ धनराजू २३ यत्र क्षेत्रों का घनफल = ४६ धनराजू
कुछ घनफल लोक का इसप्रकार ३४३ घनराजू प्राप्त होता है ।
(८) मिरिकटक क्षेत्र : यह क्षेत्र अवमध्य क्षेत्र जैसा ही माना जा सकता है जिसमें २० गिरियां हैं शेष उल्टी गिरियां हैं । इस प्रकार कुल गिरिकटक क्षेत्र मिथ धनफल से बना है । इसप्रकार दोनों क्षेत्रों में विशेष अंतर दिखाई नहीं दिया है ।
२० गिरियों का घनफल- ४२०=१६६ धन राजू शेष १५ गिरियों का माल = १५:४७: राजू इस प्रकार मिश्च धनफल ३४३ घन राजु प्राप्त होता है । गाथा १/२७० आदि
वातवलयों द्वारा बेष्टित लोक का विवरण इन माथाओं में है, जहां विभिन्न प्राकृतियों बाले वातवलयों के घनफल निकाले गये हैं । ये या तो संक्षेभ के समच्छिन्नक हैं, आयतज हैं, समान्तरानीक हैं जिनमें पारम्परिक सूत्रों का उपयोग किया जाता है । संदृष्टियां अपने पाप में स्पष्ट हैं। वातावरुद्ध क्षेत्र और पाठ भूमियों के घनफल को मिलाकर उसे सम्पूर्ण लोक में से घटाने पर अवशिष्ट शुद्ध आकाश के प्रतीक रूप में ही उस संदृष्टि को माना जा सकता है। वर्ग राजुत्रों में योजन का गुरगन बतलाकर घनफल निकाला गया है उन्हें संदृष्टि रूप में जगप्रत्तर से योजनों द्वारा गुरिणत बतलाया गया है । द्वितीय महाधिकार :
गाथा २/५८
इस गाया में श्रेणि व्यवहार गरिसत का उपयोग है जिसे समान्तर श्रेढि भी कहते हैं। मानलो प्रथम पाथड़े में बिलों की कुल संख्या ३ हो और तब प्रत्येक द्वितीयादि पाथ हे में क्रमशः उत्तरोत्तर हानि हो तो थे पाथड़े में कुछ बिलों की संख्या प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित सूत्र है :
इष्ट तवें पाथड़े में कुल बिलों की संख्या ={a-in १)}