Book Title: Tattvavatar
Author(s): Devchandra Kacchi, Bechardas Jivraj
Publisher: Meghji Thobhan Sheth
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ताकि
तत्त्वावतारः।
500000 इह हि " इहं एगेसि नो सन्ना भवइ, तं जहाः-पुरत्थिमाओ वा दिसानो आगो अहं अंसि ? दाहिणाओ वा दिसानो आगो अहं अंसि? पचत्थिमानो वा दिसामो आगो अहं अंसि ? उत्तराओ वा दिसानो आगो अहं अंसि ? उड्डाओ वा दिसानो आगो अहं अंसि ? अहेदिसानो वा आगो अहं अंसि ?xxx अस्थि मे आया उववाइए, नस्थि मे पाया उववाइए, के अहं पासी ? के वा इओ चुत्रो इह पेच्च भविस्सामि ?" इत्यादि-परमर्षिप्रवचनानुसारेण लौकिकव्यवहारसंप्रगाढानां कुत एतद् उद्गतं भवेत्कोऽहम् ? कुत आयातः १ क यास्यामि ? किं करोमि च ? इति । एतादृशीं संज्ञां विना तवममायिते अस्मिन् लोके न हि कश्चित् कुतश्चित् कदाचित् किंचिदपि व्यवहारसुखमपि लभेत.
लोको हि सुखैषी-सुखार्थ चैव अहमहमिकया बाढं प्रवृत्तोऽपि प्रत्यक्षयति सबलं दुर्बलं भक्षयन्तम् , अनुभवति सर्वत्र जीवो जीवस्य जीवनम् , सम्प्रेक्षते च सर्व सम्बन्धम्मा स्वार्थम् , नीति नीत्याभासेन परिणमन्तीम्, धर्मम्
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