Book Title: Tarangvati Author(s): Pritam Singhvi Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth PratishthanPage 28
________________ तरंगवती से दूर हटने के लिए कह रह थी। अम्मां के आदेश से मुझे बुलाने आई दासियोंने उनके प्रस्थान के समाचार मुझे दिये । अतः हे गृहस्वामिनी, शरीर पर सब अलंकार और मनोहर, मूल्यवान वस्त्रों में सुसज्ज मेरी सखियोंने मुझे स्नान करा के अलंकारो से विभूषित की । मैंने सलमा सितारों से बने बेलबूटेदार, मूल्यवान, सुकोमल, सुंदर,श्वेत, ध्यानाकर्षक ध्वजपट समान पट्टांशुक पहना । वस्त्राभूषण के आबदार रत्नों की झिलमिलाती ज्योति से मेरा लावण्य, ऋतुकाल में निखर उठी चमेली-सा द्विगुणित हो उठा । तुरंत ही दासीमंडल से आवृत्त मैं बाहर के परकोटे से सटे चतुःशाल के विशाल आँगन में निकल आई । वहाँ मैंने वस्त्राभूषण से सुदीप्त उस युवती-समुदाय को इन्द्रभवन में इकट्ठे हुए अप्सरावृंद समान देखा । वहाँ बैलगाडी पर बैठा और जो बैलो को हाँकने में और काबू में रखने में अनुभवी था वह गाडीवान मुझे पुकारने लगा, 'तुम चलो चलो कुमारी ! वनभोजन-उत्सव में जाने के लिए यह विमानसी सबसे सुंदर बैलगाडी सेठ ने आज तुम्हारे लिए निश्चित की है।' यह कहकर उस सेवकने मुझे त्वरित किया । इसलिए मैं कंबल बिछी उस बैलगाडी में सुखपूर्वक सवार हो गई। मेरे पीछे-पीछे मेरी धाव और दासी सारसिका भी उसमें सवार हुईं। वह गाडी घटिकाएँ रुनकाती चल पडी। स्त्रियों की देखभाल रखनेवाले कंचुकी, घर के कारभारी और परिचारक मेरे पीछे-पीछे चले आ रहे थे। । प्रयाण इस प्रकार सुयोजित सुंदर प्रयाण कर नगरजनों को विस्मित करते हम सरल गति से राजमार्ग पर आगे बढने लगे। मैं भाँति भाँति के हाटवाला, विशाल, अनेक शाखा-प्रशाखाओं में विभक्त, लक्ष्मी के महामूल्यवान तत्त्व समान, नगर का राजपथ देखने लगी। हे गृहस्वामिनी, जाली से भिडे किवाडवाले घर मानो देखने में रसमग्न युवतियों के कारण विस्फारित नयनों से मुझे टकटकी लगाए देख रहे थे । देखने के उत्सुक लोग यानरूप विमान में बैठी लक्ष्मी-सी मुझे रास्ते पर गुजरती हुई अनिमेष नेत्रों से देख रहे थे । - अतिरिक्त इसके उस समय राजमार्ग पर चलते तरुणों के हृदय मुझे देखकर मन्मथ के शरजाल से मानो जल रहे थे । रमण करने का सुयोग कैसे प्राप्त करना ऐसे मनोरथ कर रहे उनमें एक पल में तो प्राण निकल का संशयPage Navigation
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