Book Title: Tarangvati
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 95
________________ तरंगवती ८३ . हे मृगाक्षी, तू थोडी देर क्वचित यहाँ वहाँ पडे हुए लकडी वाले वनप्रदेश की ओर दृष्टि डाल । गायों के आने-जाने से जहाँ कुचले तृण एवं गोबर छितरे नजर आते हैं ऐसे इस गोचर प्रदेश पर से अनुमान कर सकते हैं कि कोई गाँव समीप में ही है । तुम डरना छोड दो' हे गृहस्वामिनी, उस समय लोकमाता जैसी गायें मैंने वहाँ देखीं । इससे मेरा डर तुरंत दूर हुआ और अत्यंत प्रसन्नता हुई । क्षायक गाँव पहुंचना ___ इतने में असनपुष्प के करनफूल पहने, लाठी से खेलते दूध से पुष्ट, चमकीले कपोलवाले गोपबाल दिखाई पड़े। उन्होंने हमसे पूछा, 'तुम इस आडी राह कहाँ से आये ?' __आर्यपुत्र ने तब कहा, 'मित्रो, हम रास्ता भूले-भटके हैं । इस प्रदेश का क्या नाम है ? इसके नगर का नाम क्या है ? यहाँ से गाँव कितना दूर है और उसका नाम क्या है ? . उन्होंने कहा, 'नजदीक के गाँव का नाम क्षायक है। परंतु इससे अधिक हम कुछ नहीं जानते, हम तो यहीं जंगल की सीमा पर पलकर बडे हुए हैं । - इसके बाद आगे चलने पर हल से जोती भूमि के निकट धीरे-धीरे हम पहुँचे । तब प्रियतम ने मुझे फिर से इस प्रकार कहा, 'हे वरोरु, वन से पत्ते इकट्ठे कर ला रही इन ग्रामीण युवतियों को देखो । अंक में भरे पत्तों के कारण उनकी दृढ, रतनारी पुष्ट जाँघे कैसी निरावरण दीख रही हैं !' मेरा शोक एवं परिश्रम हलका करने के लिए मेरा प्रियतम ये एवं अन्य चीजें मुझे दिखाकर प्रिय वचन कहता रहता था । गाँव का तालाब इसके बाद थोडे आगे बढे तो हम गाँव के तालाब के पास आ गये । वह स्वच्छ जल से परिपूर्ण था । उसमें मछलियों की बहुतायत थी। चारों ओर । कमलों के समूह खिले हुए थे। गाँव के उस तालाब में से हमने स्वच्छ, विकसित कमलों की सुगंधपूर्ण पानी निर्भय मन होकर अंजलि भर-भर पीया ।

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