Book Title: Tarangvati
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 111
________________ . तरंगवती - अद्भुत शिशिर के बीतने पर हेमंत ऋतु की पारी आई । वह हिम के प्रताप एवं प्रचंड बल से भयावनी लग रही थी। वह विषयसुख के लिए प्रतिकूल होने से पति के संग में रहने में बाधा बन गई। अब आम्रवृक्षों में मंजरियाँ फूट पड़ी । सिकुड देनेवाली शीत का अंत हुआ। जिसमें लोग सुखवास अनुभव करते हैं, कामप्रवृत्ति का बसंत मास आया। उस समय हे गृहस्वामिनी, जो युद्ध में सम्मिलित नहीं हुए थे उनका (डालियों का) भी वध किया गया और निरपराधों को भी बाँध दिया गया थे ऐसे रस्सों के झूले जगह जगह लोगों ने डाल दिये । उस समय दुःखी लोगों पर अनुग्रह करने को तत्पर होते हुए भी बंधन में जकड़े हिंदोलों पर प्रियजनों के संग परितोषपूर्वक झूलने के लिए दौड पडते थे । उपवनविहार अद्भुत दृश्योंवाले प्रमदवन में तथा मदन, बाण और कोशाम्रवृक्षोंवाले नंदनवन में देवतुल्य हम अनुपम क्रीडाओं में रत रहते थे । उपवन में मानो पुष्पसिंगार सजी वनिताओं जैसी तरुलताएँ थीं। उनमें अतिमुक्ता का पुष्प मानो चंद्रकिरण का पराभव करता दिखाई देता था। मेरे प्रियतम ने भाँति भाँतिके पुष्प आदि बताये और उनकी प्रशंसा के मिष्ट वचन कहते हुए मेरे केशमें गूंथे । वहाँ विहरते समय वृक्षों, पुष्पों आदि के विविध रूपरंग एवं आकारप्रकार प्रीतिसभर एवं मुद्रित मन से हम निहारते थे । श्रमण के दर्शन वहाँ उस समय अशोक वृक्ष की छाया में, शुद्ध शिलापट्ट पर शोकमुक्त एवं निर्मल चित्त से बैठे एक पवित्र श्रमण को हमने देखा । मैंने अपने मुख पर लगाया चूर्ण, तिलक, पत्रांकन आदि को तुरंत पोंछ डाला, पैरों की पादुकाएँ निकालकर छोड दी, केशकलाप में से सारे कुसुम निकालकर फेंक दिये । ___ प्रियतम ने भी उसी प्रकार पादुकाएँ निकाल कर रख दी और पुष्प दूर किये। इसलिए कि गुरु के पास ठस्सेदार सज-धज के साथ उपस्थित होना उचित

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