Book Title: Tarangvati
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 130
________________ ११८ तरंगवती परंतु मृत्यु अटल है, किसी भी क्षण चल बसना हो सकता है, इसलिए लोग संयम का प्रकाश प्राप्त करके सांसारिक दुःखपूर्ण गति से मुक्त होते हैं। इसके अतिरिक्त यह कि दुःख भी अवश्यंभावी हैं और जीवन चंचल होने के कारण मनुष्य को सदैव धर्माचरण में बुद्धि रखनी चाहिए । प्रव्रज्याग्रहण के लिये तत्पर : परिचारकों का विलाप इस प्रकार के उस सुधर्मा साधु के वचन सुनकर, आयुष्य की चंचलता से खिन्न होकर तपश्चर्या का प्रारंभ करने को उत्साही ऐसे हम दोनों मुदित-मन हुए। ... हमने सेवकों के हाथों में सब आभूषण रख दिये और कहा : 'ये ले जाओ और हम दोनों के मातपिता से कहना कि अनेक जन्मों के परिभ्रमण से उद्विग्न और दुःखों से भयभीत बने हुए हम दोनों ने श्रमण-जीवन अंगीकार कर लिया है। और साथ ही यह भी कहना कि उनके प्रति विनय बरतने में तथा अन्य किसी प्रकार जो कोई स्थूल या सूक्ष्म दोष किया हो और मद एवं प्रमाद में हमसे जो कुछ न करने योग्य कदाचित् हो गया हो, उन सबको क्षमा कर देना ।" यह सुनकर सेवक-सेविकाओंने सहसा दुःख से रोदन-क्रंदन मचा दिया। परिजन के साथ नाटक खेलनेवाली दौड आईं । हम जो करने को उद्यत हैं वह बात सुनकर वे मेरे प्रियतम के पाँव पडकर कहने लगीं, "हे नाथ ! हम को अनाथ छोड़कर मत जाइए।" हे गृहस्वामिनी मेरे प्रियतम के पैरों में गिरकर उसे रिझाने के लिए अलकावलियों से गिरे पुष्पों के पुंज से मानो बलिकर्म किया। "तुम्हें अनायास क्रीडाए एवं स्वेच्छाप्राप्त मनमाना सुरतसुख सर्वदा सुलभ हैं । तुम्हारे आवास में यद्यपि हमें कदापि रतिसुख का लाभ नहीं मिलता तो भी हम अपने नेत्रों से हर-हमेश तुम्हें देखने की चाह करती हैं। जो प्रफुल्ल कुमुद जैसा श्वेत और कुमुद-शोभा का कारण है, वह पूर्ण कलामंडल सहित निर्मल चंद्र यद्यपि अस्पृश्य है तथापि किसको प्रीतिदायक नहीं लगता ?" केशलुंचन : व्रतगहण ऐसे अनेक करुण विलापवचन कहकर उन स्त्रियोंने प्रियतम को तपश्चर्या

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