Book Title: Tarangvati
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 138
________________ १२६ तरंगवती मानकर सहर्ष हृदय में धारण किया। इस प्रकार धर्मबुद्धि पाने से संवेग में श्रद्धा दृढ हुई और उन्होंने शीलव्रत एवं गुणव्रत लिये। __ वे जीव, अजीव आदि जैनशास्त्र में वर्णित पदार्थों का ज्ञान प्राप्त करके शुभाशययुक्त हुईं और उन्होंने शीलव्रत एवं अणुव्रत धारण करके हृदयस्थ किये। ___ अन्य सब तरुणियाँ भी यह सारी कथा सुनकर जिनवचन में दृढ श्रद्धायुक्त हुई और संवेग भाव धारण करने को तत्पर हुईं। संयम, तप एवं योग के गुण जिसने धारण किये थे वह आर्या भी अन्य छोटी श्रमणियों के साथ वहाँ से अचित भिक्षा लेकर, जहाँसे आई थी वहाँ लौट गई। ग्रंथकार का उपसंहार __बोध देने के उद्देश्य से यह आख्यान आपके सामने कहा है । आपका समूचा दूरित दूर हो और आपकी भक्ति जिनेन्द्र में दृढ हो । संक्षेपकार का उपसंहार यह कथा हाईयपुरीय गच्छ के वीरभद्रसूरि के शिष्य नेमिचंद्रगणि के शिष्य यश ने लिखी है।

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