Book Title: Tarangvati
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 134
________________ १२२ तरंगवती इस प्रकार परमार्थ एवं निश्चय-नय के जानकार यत्नशील और किसी बात में आसक्त न होनेवाले के लिए मोक्षप्राप्ति सरल बन जाती है। आपलोग कुछ वर्ष कामभोग कर लेने की बात जो कहते हैं, उसमें यह आपत्ति है कि सहसा आ धमकते मृत्यु का भय संसार में हमेशा जीव पर मंडरा रहा है। विश्व में ऐसा कोई नहीं जिसमें मृत्यु को रोकने का सामर्थ्य हो । इसलिए काल के उचित - अनुचित होने का विचार किये बिना ही शीघ्र प्रव्रज्या ग्रहण करना चाहिए। अनिच्छा से सार्थवाह की अनुमति ऐसे अनेक वचन कहकर सार्थवाहपुत्र ने उस समय मातापिता एवं अन्य स्वजनों के विरोध का निवारण किया । बचपन में जिनके साथ धूल में खेला था उन विवेकी मित्रों का विरोध भी शांत करके प्रव्रज्या लेने को तत्पर उसने सबको निराश किया। हे गृहस्वामिनी ! इस प्रकार हम दोनों तपचरण के लिए यद्यपि दृढ थे तथापि तीव्र पुत्रस्नेह के वश होकर सार्थवाह ने हमें जाने देना न चाहा । इसलिए अनेक लोगों ने उन्हें समझाया कि - प्रियजनों के वियोग और जन्म-मृत्यु की असह्यता वगैरह भयों से डर खा गए इन दोनों को उनकी इच्छानुसार तपाचरण करने दो । जिसका मन कामोपभोग से विमुख हुआ है और जो तपश्चर्या करने के लिए अधीर हो गया है उसको बाधक बननेवाला व्यक्ति मित्र के रूप में शत्रु का काम करता है।' इस प्रकार लोगों के वचनों का कोलाहल मच गया। यह देखकर सार्थवाह ने हमें प्रव्रज्या ग्रहण करने की अनुमति प्रदान की। हाथ जोडकर उन्होंने हमसे कहा : _ विविध अनेक नियम एवं उपवास के कारण कठिन ऐसे इस श्रमणधर्म को भलीभाँति निभाना। ___ जन्म-मृत्यु के तरंगवाले, अनेक योनियों के भ्रमणरूप भंवरोंवाले, आठ प्रकार के कर्मसमुहरूप मलिन जलराशिवाले, प्रियजनों के वियोगविलापरूप गर्जनवाले, रागरूप मगरों से भरपूर इस विशाल संसारसमुद्र को तुम तर जाओ ऐसा

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