Book Title: Tarangvati
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 117
________________ तरंगवती १०५ वस्ती थी जिसमें निंद्य कर्म करनेवाले जंगल के पशुओं की मौत जैसे व्याधों का जनपद था । उनकी झोंपड़ियों का आँगन प्रदेश, वहाँ सुखाये गये रक्त टपकते मांस, चमडे और चरबी से छा जाने से संध्या का दृश्य धारण कर रहा था। व्याधपत्नियाँ लाल कँबल की ओढनियाँ ओढ कर लहू चूता मांस गोद . में भर-भरकर आती-जाती दिखाई पडती थीं। कुछ व्याधपलियाँ मयुरपिच्छ से सजी-सँवारी ओढनियाँ ओढकर हस्तिदंत . के मूसलों से धान कूटने का काम कर रही थीं। व्याध का पूर्वभव - इससे पूर्वभव में प्राणियों का घातक, हाथी के शिकार में कुशल, मांसाहारी शिकारी के रूप में वहां मेरा जन्म हुआ था। मैं प्रतिदिन अभ्यास कर के धनुविद्या निपुण हुआ और प्रबल प्रहार करने की शक्ति मैंने प्राप्त की। मैं तिरंदाज के रूप में प्रख्यात हुआ और 'अमोघकांड नाम से सर्वत्रविख्यात हुआ। - मेरा पिता सिंह भी दृढप्रहारी एवं अचूक निशानेबाज था । वह अपने काम से विख्यात था। मेरे पिता को बहुत प्यारी और वन्य वेशधारिणी अटवीश्री नाम की वन्यबाला मेरी माता थी । जब मैं वयस्क हुआ और एक ही बाण से हाथी को मारगिराने लगा, तब मेरे पिताने मुझसे कहा, 'तुम सुनो और ध्यान में रखो कि हमारा कुलधर्म क्या है। व्याध का कुलधर्म व्याधों के कोश एवं गृह के रक्षक ऐसे श्वान, और बीज डालने में समर्थ ऐसे यूथपति हाथी को तुम कभी न मारना । बच्चों की देख-भाल करने में लीन, पुत्रस्नेह से पंगु और व्याध से न डरनेवाली हथिनी को भी तुम न मारना । अकेला छोड़ दिया न हो ऐसे छोटे, भोले, दूधमुंहे मकुने हाथी का बच्चा को भी तुम मत मारना - समय बीतने पर बच्चा बडा हाथी होगा ऐसा हिसाब लगाना।

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