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तरंगवती जिमाया और वाहन के बैलों की अच्छी देख-भाल की गई । वहाँ सुख से रात्रिनिवास करने के बाद अगले दिन सूर्योदय होते ही हमने हाथपैर एवं मुँह धो लिए और घर के लोगों से बिदा लेकर हम आगे बढे ।
भाँति भाँति के पक्षीगण का कलरव एवं भ्रमरवृंद की गुंजार सुनाई पड़ते थे। बड़ों एवं बुजुर्गों के संबंध में बातें हो रही थीं जिनमें हम उतने लीन हुए कि पता भी न चला कि पंथ कैसे कट गया ।
कुल्माषहस्ती हमको गाँव, नगर, कीर्तिस्मारक, चैत्यवृक्ष एवं मार्गों के नाम कहता रहता था और हम सब उन्हें देखते जाते थे । कौशाम्बी की सीमा में प्रवेश
इस प्रकार क्रमशः हम कल्माषवट के पास पहुँचे । वह पथिकों का टिकान; राष्ट्रीय मार्ग का केतु, धरती का पुष्ट पयोधर एवं कौशाम्बी की सीमा के मुकुट समान था। उसकी प्रचंड शाखाएँ बहुत विस्तीर्ण थीं एवं हरे पत्तों से घनी छाई हुई थीं। उस पर पक्षीवृंद अनगिनत थे।
वहाँ स्थित एक घर के आंगन में निर्मल श्वेत जलधर का उपहास करता चंदोवा बँधा था। वहाँ तरोताजा सुगंध से महकते मांगलिक उत्तम पुष्पों की सजावट की गई थी। वंदनमालाएँ द्वार पर लटकाई गई थीं और चौक में बड़ा स्वस्तिक बनाकर बीच में ये पर्णो से सजाकर नया कलश रखा था। रमणियों, स्वजनों एवं परिजनों से वह आंगन खचाखच भर गया था मानो उनसे उबल रहा हो । हमने उसमें प्रवेश किया ।
इसके बाद वहाँ एकत्रित हुए निकटवर्ती स्नेही, स्वजन, आदरणीय एवं मित्रों के वृंद देंखे। इससे हम विश्वस्त हुए। उन्होंने हम दोनों को सैकड़ों मांगलिक विधिविधान करवा के कल्माषवट के नीचे स्नान करवाया। स्नान के बाद प्रसाधन एवं उचित आभूषण से हमें सजाये गये और हमारे प्रसन्न स्वजनवृंद हम दोनों को श्वसुरगृह एवं पीहरगृह की ओर ले चले । नगरप्रवेश
___ मेरे लिए उत्तम वाहन ले आये थे। मै उसमें चढकर सबके साथ आगे बढी । मेरे घर से बाहर निकल आये धात्री, सारसिका, वर्षधरों, वृद्धों, व्यवस्थापकों,