Book Title: Tarangvati
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 101
________________ तरंगवती ८९ किया और थकान मिटाई । पत्र का प्रत्युत्तरं मिलने पर हम प्रसन्न हुए और कौशाम्बी जाने को उत्सुक हो गये । हमारे लिए प्रवासखर्च में आवश्यक सोना और पहनने के लिए विविध वस्त्र लाये गये । उस मित्र के घर की महिलाओं के मना करने के बावजूद मैंने भोजनमूल्य देना उचित समझकर उनके बच्चों के हाथ में एक एक हजार कार्षापण दिये । स्नेह का यह अनुचित प्रत्युत्तर होने के भय से प्रियतम ने कहा, 'उपकार के प्रत्युत्तर रूप यह हम तो बहुत अल्प दे सके हैं' और भावनापूर्वक लज्जित होने लगे। प्रणाशकनगर से विदाय सभी स्त्रियों के गले लगकर मैंने उनसे बिदा ली। मित्र के घर के सभी पुरुषों से भी प्रियतम एवं मैंने भाव से आर्द्र होकर अब प्रस्थान की आज्ञा माँगी। अलग होते समय हमने मित्र के घर के लोगों को हमारे स्मरणचिह्नों के रूप में विविध प्रकार के बहुमूल्य वस्त्रों का उपहार प्रदान किया । हे गृहस्वामिनी मार्ग के संभाव्य भय एवं कष्टों को ध्यान में लेकर वहाँ से अनेक औषध एवं पाथेय को भी साथ में लिया। मेरा प्रियतम उत्तम लक्षणयुक्त, ऊँची नस्ल के वेगी अश्व पर सवार होकर मेरे वाहन के पीछे-पीछे आ रहा था। सार्थवाह एवं श्रेष्ठी ने भेजे कुल्माषहस्ती समेत के काफिले के घेरे से वह रक्षित था। अनेक युद्धों में योगदान देकर पराक्रम से जिन्होंने नाम कमाया है और जिनका प्रताप सुविदित है, ऐसे हथियारधारी वीर हमारे रक्षक थे। रिद्धि, समृद्धि एवं अनेक गुणों से कई लोगों की चाहना प्राप्त करते अनेक हाट-बाजारों से समृद्ध गलियों से सुशोभित उस प्रणाशक नगर से हमने प्रस्थान किया। आराम एवं हमारी अनुकूलता अनुसार राजमार्ग से गुजरते हमको दूर दूर तक खडे हजारों लोग देख रहे थे । मित्र के घर के सदस्य स्नेहवश हमें बिदा करने आये थे। अन्य के लिए दुर्लभ इस प्रकार मय दबदबे के हम गाँव से बाहर निकले। आर्यपुत्र की सूचना से सारथि ने वाहन रोका । उसमें प्रियतम भी आ बैठा फिर वाहन आगे बढा । चारों ओर मनोहर महकते ऊँचे ऊँचे धान के खेत

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