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तरंगवती
ब्राह्मणवाडे में होकर हमने उस ब्राह्मण के घर में प्रवेश किया
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वहाँ छतमें लटकाये गये कलश के कंठ से जलबिंदु टपकते थे । पाँवप्रक्षालन कर हम गौशाला के समीप बैठे। हाथ-मुँह धोने के लिए हमको शुद्ध जल दिया । खाद्यान्न बन गया था । सुपक्व, रसमय, स्निग्ध अन्न से हमें तृप्त किया गया । हे गृहस्वामिनी, वहाँ हमने अमृत - सा अत्यंत रुचिकर आहार प्राप्त किया। इसके बाद हाथ धोये, जूठे बरतन खिसका दिये और पाँवों में पड़े खरोंच पर घी मलकर स्निग्ध किये । अंत में उस कुनबे के लोगों को नमस्कार करके हम वहाँ से चल निकले ।
प्रणाशकनगर में विश्रांति
हम दोनों अतिशय श्रान्त एवं थके-माँदे थे इसलिए घोडे पर सवार हुए। कुल्माषहस्ती और उसका सुभटपरिवार हमें घेरकर पैदल चल रहे थे । इस प्रकार हम उस प्रदेश के आभूषण समान, लक्ष्मी के निवासरूप, समस्त गुणों से युक्त शोकविनाशक प्रणाशक नामक नगर के पास पहुँचे ।
वहाँ गंगा की सहेली जैसी और ऊँचे कगारों के कारण विषमतट एवं जलभरपूर तमसा नदी को हमें नौका में बैठकर पार करना पडा तब हमे प्राणशकनगर. में प्रविष्ट हुए । प्रणाशकनगर सुंदर चूडामणि समान हाटबाजारों से समृद्ध है गंगा और तमसा के संगम के तिलकस्थान पर भव्य एवं सुहावना लगता है । जब हम वहाँ पहुँचे तब दिवस एक तिहाई शेष रहा था ।
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कल्माषहस्ती के भेजे एक व्यक्ति द्वारा प्राप्त वाहन में हम बैठे और वहाँ नगर के सिवान पर रहते एक मित्र के घर में सुखपूर्वक प्रवेश किया । वहाँ स्नान, भोजन, अंगलेपन आदि अच्छी सुश्रूषा प्राप्त हुई और शांति से निद्रा लेकर सुख से रात गुजारी । सुबह हाथमुँह धोकर देवताओं को प्रणाम किया और श्रम, भय और भूख से मुक्त बने हम फिर से शय्या में आराम करने लगे ।
उस समय अच्छा मुहूर्त देखकर 'कल्माषहस्ती के साथ हम आ रहे हैं' इस प्रकार के संदेश के प्रियतम ने पत्र लिखे और कौशाम्बी हमारे घर भेजे | अभ्यंग, वस्त्राभूषण एवं अन्य शारीरिक सुखसुविधाएँ पाईं और खानपान का आनंद लेते हुए हम वहाँ ठहर गये । हे गृहस्वामिनी, इस प्रकार कुछ दिन वहाँ हमने निवास
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