Book Title: Tarangvati Author(s): Pritam Singhvi Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth PratishthanPage 96
________________ ८४ तरंगवती उत्सुक ग्रामीण तरुणियाँ उस समय हमने चूडियों से भरा हाथ पानी के घडे के कंठ से सटाकर, कटिप्रदेश पर ठहराकर ढोती युवतियाँ देखीं । मन में आया कि इन घडों ने क्या पुण्य किया होगा कि जिन्हें ये युवतियाँ प्रियतम की तरह कटितट रखकर चूडियों भरे हाथों से आलंगिन देती हैं ? वे भी विस्मय से विस्फारित नेत्रों से बार-बार एवं टकटकी बाँधे (अविरत) बड़ी देर तक हमको देखने लगीं। हम दोनों उस गाँव में पहुँच जहाँ पुष्ट तुंबोंसे सुंदर लग रही सरस प्रौढ बाडें ऐसी लगती थीं मानो विपुल स्तनवाली महिलाएँ आंलिगन दे रही हों । हमारे सौन्दर्य से विस्मित ग्रामतरुणियाँ हमें आँखों से अलग न होने देती थीं। वे उतावली होकर जोश में एकदूसरी को ढकेलती थीं । कुछ स्थानों पर देखने लायक हमें देखने की स्पर्धा में उन्होनें बाडों को कुचलकर तोड डाला । बाडे तोडने की आवाज सुनकर वृद्ध चिंतित होकर घरों से निकल बाहर रास्ते पर गये । कुछ स्थलों के कुत्ते इकट्ठे हो गये और मुँह उठाकर भोंकने लगे। अतिशय चौडी चूडियों एवं फीके मैले एवं दुबले देहवाली वृद्धाएँ और बीमार स्त्रियाँ भी हमें देखने के लिए बाहर निकल आई थीं । हे गृहस्वामिनी, गृहस्थ स्त्रियाँ भी मुलायम ऊँचे प्रकार के वस्त्र की ओढनी ओढकर, कमर पर बच्चे उठाकर, बाहर निकल हमें देख रही थीं। इस प्रकार अनेक प्रकार की परिस्थितियाँ अटकल से समझते, चलतेचलते यह सब देखते हुए हमने वह मार्ग तय किया । आहार की तलाश वन्य पगडंडी पर चलने के कारण मेरे तलवों में छाले पड़ गये थे। जीवित रहने की लालसा में भूख, प्यास एवं थकान की मैं उपेक्षा कर जंगल पार कर गई थी। परंतु अब भयमुक्त हुई एवं बचने का मार्ग खुल जाने पर भी मेरे पैर एवं अन्य अंगों में पीडा, थकान एवं मूख-प्यास को मैं अनुभव करने लगी। ___ अतः मैंने प्रियतम से कहा : 'हम अब भूख शान्त हो ऐसे पथ्य एवं निर्दोष आहार की यहीं कहीं तलाश करें।" यह सुनकर प्रियतम ने मुझसे कहा, चोरों ने हमारा सर्वस्व छीन लियाPage Navigation
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