Book Title: Tarangvati
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 59
________________ तरंगवती ४७ प्रेमवश मेरे पीछे मृत्यु को गले लगानेवाली उस चक्रवाकी को चित्रपट्ट में देखकर मेरे हृदयरूप वन में दावानल-सा शोक एकाएक प्रदीप्त हो उठा । तदनंतर अनुरागवन में उद्भूत प्रियविरह के करुण दुःख से मन व्यथित होने पर मैं कैसे लुढक पड़ा यह मैं नहीं जानता । चित्र देखकर स्मरण हो आने के कारण जो भारी दुःख मैने अनुभव किया वह मैंने संक्षेप में बता दिया । अब से मैंने प्रतिज्ञा की है कि उसके प्रति मेरे प्रेम के कारण अन्य किसी स्त्री को मन में स्थान न दूंगा । यदि उस सुंदरी से मेरा किसी भी प्रकार समागम होगा केवल तो ही मैं मानवजीनव के कामभोगों की अभिलाष करूंगा। इसलिए तुम जाकर पूछताछ करो कि यह चित्रपट्ट किसने अंकित किया है। कोई तो इसकी निगरानी करनेवाला यहाँ होगा ही। चित्रकार ने अपने ही अनुभव को आलेखन द्वारा यहाँ प्रदर्शित किया है। अनेक चिह्नों के आधार पर मुझे प्रतीत हुआ है कि यह चित्र कल्पित नहीं है। मैंने पूर्वभव में पक्षी के रूप में उसके साथ जो अनुभव किया था वह उसके सिवा अन्य कोई रेखांकित कर ही नहीं सकता । .. चित्रकार की पहिचान हे सुन्दरी, यह सुनकर मैं चित्रपट्ट के पास सरक गई, क्योंकि वे लोग यदि कुछ पूछताछ करने के लिए आये, तो मैं उनको उत्तर दे सकूँ । दीपक सहेजने के काम में व्यस्त होऊँ ऐसी चेष्टा मैं करने लगी और पूछताछ करने आनेवाले की प्रतीक्षा करती मैं वहाँ बैठी । इतने में व्याकुल दृष्टिवाला उनमें से एक व्यक्ति आया और उसने मुझसे पूछा, "यह चित्रपट्ट अंकित करके सारी नगरी को किसने विस्मित किया है ?" मैंने उससे कहा, 'भद्र, इसका अंकन श्रेष्ठी की कन्या तरंगवती ने किया है। उसने कोई विशेष आशय के अनुरूप यह चित्र तैयार किया है । 'यह कल्पित नहीं है।' . इस प्रकार चित्र के सही रहस्य की जानकारी पाकर वह जहाँ तुम्हारा प्रियतम था वहाँ वापस गया । मैं भी उसके पीछे-पीछे गई और एक ओर खड़ी रहकर एकचित्त से उनकी बातें सुनने लगी।

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