Book Title: Tarangvati
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 85
________________ ____७३ तरंगवती लगता है वैसे ये तरुण-तरुणी एकदूसरे की शोभा बढ़ा रहे हैं।' उस पल्ली में एक ओर लोग आनंद-प्रमोद कर रहे थे तो दूसरी ओर बंधन से बाँधे बंदियों का करुण क्रंदन सुनाई पड़ता था । अतः वहाँ देवलोक एवं यमलोक उभय के दर्शन हो रहे थे । पल्लीवासियों के विविध प्रतिभाव अनन्य रूप, लावण्य एवं यौवन से युक्त देवतायुगल जैसा तरुण-तरुणी का युगल सुभट पकड लाये हैं, यह सुनकर कौतुक से बालक, बूढे एवं स्त्रियाँ सहित लोकसमुदाय पल्ली मार्ग में उमडने लगा। इस प्रकार करुण दशा में हमको ले जा रहे देखकर स्त्रियाँ शोकान्वित होकर एवं बंदिनियाँ अपनी संतान जैसे हमें मानकर रुदन करने लगीं । ' एक स्थान पर तरुणों के मन एवं चक्षु चुरा लेनेवाली चोरतरुणियाँ मेरे प्रियतम को देखकर हास्यपुलकित हो यह कहने लगी : 'आकाश में से रोहिणी सहित नीचे उतरे चंद्र जैसे इस युवान बंदी को उसकी पत्नी के साथ-साथ ही रखना।' मेरे प्रियतम के रूप में लुब्ध श्वेतनयनी चोरस्त्रियों के प्राण केवल उनकी आँखों में एकत्रित हो गये। तरुणियाँ विलासपूर्ण अंगविक्षेप के रूप में कामविकार प्रदर्शित करती हुई कटाक्ष करती हुई वहाँ से गुजरते हुए प्रियतम को प्यार से देख रही थी। उनको कामविकार के कारण हँसती-मुस्काती देख उस समय मेरे चित्त में शोक एवं ईर्ष्यायुक्त क्रोधाग्नि भभक उठी । बंदी बनाये गये मेरे प्रियतम को मेरे साथ वहाँ प्रविष्ट होता देखकर कुछ बंदिनियाँ उसको पुत्र के समान मानकर शोक करती हुई रुदन करने लगीं। 'देव समान सुन्दर एवं नयनामृत समान तुम हमारे हृदयचोर हो । तुम्हें मुक्त करे।' इस प्रकार मेरे प्रियतम को संबोधित करती कुछ बंदिनियाँ कहने लगी। और अन्य कुछ बंदिनियाँ रोती-चिल्लाती प्रार्थनापूर्वक दुआ के साथ कहने लगी, 'हे पुत्र, तुम अपनी पत्नी के साथ बंधन मुक्त बनो ।'

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