Book Title: Tarangvati
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 86
________________ ७४ तरंगवती साथ ही मुझे देखकर वहाँ कुछ छैले युवक आनंद से किलकारियाँ भरते कहने लगे, 'इस युवती के क्या ही कमाल के रूपरंग एवं रसपूर्ण लावण्य हैं !' तो कुछ मुझे सराहते हुए एकदूसरे को दिखाते थे, 'बच्चे ! इस अप्सरा तुल्य गोरी को तो देखो ! पुष्पगुच्छ समान स्तनयुगल एवं पल्लव समान हाथवाली, अपने प्रियतमरूप मधुकर से सेवित इस स्त्री के रूप में अशोकलता को देखो! स्तनयुगलरूप चक्रवाक, कटिमेखलारूप हंसश्रेणी, नयनरूप मत्स्ययुगल एवं विस्तीर्ण कटिरूप पुलिनवाली अहा इस युवतीरूप नदी को तो ! देखो। अतिशय रुदन करने के कारण लाल अंगारे-सा हो चुका उसका सहज सुन्दर बदन, संध्या की रक्तिम आभा से रंजित शरदपूर्णिमा के चंद्र जैसा कितना सुंदर लग रहा है ! सभी अवस्थांतरों में सुन्दर एवं श्रीयुत उसके रूप के कारण वह कमल रहित हाथवाली भगवती लक्ष्मी समान सुन्दर लग रही है।। उसके केश मसृण हैं, नेत्र श्यामल हैं, दंतपंक्ति श्वेत एवं निर्मल है, स्तन गोलमटोल हैं, जघन पुष्ट हैं एवं चरण सप्रमाण हैं । कुछ चोर कहने लगे थे, 'हम इसे देख धन्य हो गये : कदाचित् सिंगार सजने की तैयारी के समय देवांगना रंभा ऐसी ही लगती होगी । यदि यह रमणी स्तंभ को स्पर्श करे तो उसे भी चलित कर दे, ऋषियों को चित्त भी चंचल कर दे; इन्द्र भी अपनी एक हजार आँखों से देखता रहे तो भी तृप्त न होगा। तो कुछ चोर परायी स्त्री के प्रति आँख उठाकर देखने में पापभीरू, विनयपूर्वक शरीर सिकुडकर चले जाते थे। वे 'यह बेचारी दीन है, अपने पति के साथ ।'ऐसे भाव से मुझे देखकर दूर सरक जाते थे। 'इस तरुण का वध करके हमारा सेनापति इस असाधारण रूपवती युवती को अपनी गृहिणी बनाएगा ।'- इस प्रकार वहाँ पकड के लाये गये अन्य स्त्रीपुरुष कह रहे थे कि मेरे प्रियतम का वध करेगा। ऐसे संकेत से मैं अत्यंत भयभीत बन जाती थी।

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