Book Title: Tarangvati
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 84
________________ ७२ तरंगवती लूटने पर भी इतना माल न मिलता । आराम से बहुतसे दिन जुआ खेलेंगे और मनचहेतियाँ के चाव पूरा करेंगे। इस प्रकार विचारविमर्श करके वे चोर नदीतट त्यागकर एम दोनों पर पहरा देते हुए, दक्षिण की ओर ले चले । चोरपल्ली विकसित सूयबेल से हम दोनों को बाँध लिये और हलाहल विष से भी अधिक हतक ऐसी चोरों के लिए सुखदायक पल्ली में हमें ले गये । वह पल्ली पहाड की खोह में बनी हुई थी, रमणीय एवं दुर्गम थी। उसके आसपास का प्रदेश निर्जल था किन्तु उसमें जलभंडार थे और शत्रुसेना के लिए वह अगम्य थी। उसके द्वारप्रदेश में से अनेक लोगों का आना-जाना निरंतर हुआ करता था । साथ साथ वहाँ तलवार, शक्ति, ढाल, बाण, कनक, भाला वगैरह विविध आयुधों से सज्ज चोर पहरा दे रहे थे। वहाँ मल्लघटी, पटह, डुडुक्क, मकुंद, शंख एवं पिरिली के नाद गूंज रहे थे । ऊँची आवाज से हो रहे गानतान, हँसीमजाक, चीख-पुकार का चहुँओर कोलाहल था। उसमें प्रवेश करते समय हमने प्राणियों के बलिदान से तुष्ट होनेवाली देवी का स्थानक देखा । देवस्थान तक जाने के लिए सीढियाँ बनी हुई थी और उस पर अनेक ध्वजापताकाएँ फहर रही थीं। कात्यायनी देवी के स्थानक को नमस्कार कर प्रदक्षिणा करके हमने वहाँ उपस्थित एवं बाहर से वापस लौटे चारों को देखा। वहाँ नियुक्त चोरों ने अक्षत शरीर एवं लाभ सहित लौटे हमारे साथ के चोरों से पूछताछ की और लताबंधन से बंधे हम दोनों को पल्ली में लाये गये देखकर वे विस्मित हृदय एवं अनिमेष आँखों से देखने लगे। इनमें से कुछ कहने लगे, 'नरनारी के साररूप यह युगल सुन्दर लगता है । तनिक भी मानसिक थकान, बिना अनुभव किये इन्हें विधाता ने बनाये हों ऐसा लगता है। चंद्र से रात ज्यों सुन्दर लगती है, और रात्रि से शरच्चंद्र सुहावना

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