Book Title: Tarangvati
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 90
________________ ७८ तरंगवती अचानक प्रोत्साहक गीत सुनाई देना . उस समय वहाँ शराबखाने में बैठे कुछ सुभटों ने कर्णप्रिय सुमधुर गीतवादन के साथ इस प्रकार गाया : आपत्ति आ पड़ने पर उसकी अवगणना करके जो पुरुष साहसकर्म का आरंभ कर देता है वह या तो बुरे दिन देखता है अथवा सिद्धि पाता है। प्रवृत्ति का प्रारंभ करनेवाला पुरुष या तो लक्ष्मी प्राप्त करता है अथवा तो मरण । परंतु जो प्रवृत्ति से किनारा करता है उसकी तो मौत अवश्य आएगी और लक्ष्मी के दर्शन भी दुर्लभ होंगे। मृत्यु सबकी निश्चित होती है। इसलिए प्रिय हो उसे करने में देर न करो। अपने मनोरथ पूरे होने से सन्तुष्ट हुए मनुष्य की मौत सफल समझी जाती है। बेशुमार संकट से ग्रस्त पुरुष को भी रंज करना नहीं चाहिए । अरे ! छोडकर चली गई लक्ष्मी भी अल्प समय में फिर से लौट आती है। . जो विषम परिस्थिति में फंसा हो और पुरुषार्थ असका नष्ट हो गया हो, ऐसे पुरुष, को जो दुःख झेलने पड़ते हैं वे सब प्रियतमा के संग में सुख रूप हो जाते हैं। अमिट कर्मविपाक हे गृहस्वामिनी, वह गाना सुनकर मेरा प्रियतम उसके भावार्थ से प्रेरित होकर मुझसे कहने लगा, 'हे वरनितंबिनी प्रिया, तुम मेरे इन वचनों पर सोचो विचारो, हे श्याम-मसृण-प्रलंबकेशकलापिनी प्रिया, निगूढ रहस्यमय पूर्वकृत कर्मों के फल से छुटकारा असंभव है। ___कोई भागकर कहीं भी जाये यमराज की पकड में आ ही जाता है। उनके प्रहारों से बचने का प्रयास करनेवाला कोई भी मनुष्य कर्मफल अर्थात् प्रारब्ध निवार नहीं सकता। यदि ग्रहनक्षत्र के स्वामी अमृतगर्भ चंद्र पर भी आपत्ति आती है तो फिर मामूली मनुष्य के लिए शोक क्यों करें ? क्षेत्र, द्रव्य, गुण एवं काल के अनुसार स्वकर्मफल सुखदुःख के रूप

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