Book Title: Tarangvati
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 60
________________ ४८ तरंगवती वहाँ जाकर वह तरुण हँसता, मुस्काता, उपहास के स्वर में बोला, "बच्चा पद्मदेव ! तुम डरो मत, तुम पर गोरी प्रसन्न हुई है। चित्रकार है ऋषभसेन श्रेष्ठी की पुत्री, जिसका नाम तरंगवती है। कहा गया कि उसने अपने चित्त के अभिप्राय के अनुरूप चित्र बनाया हैं, कुछ भी मन की कल्पना से अंकित नहीं किया। बताया गया कि यह सब पहले वास्तव में घटित हुआ था। मेरे पूछने पर उसकी दासी ने प्रत्युत्तर में मुझको इस प्रकार कहा ।" यह बात सुनकर तुम्हारे प्रियतम का मुख प्रफुल्ल कमल-सा आनंद से खिल उठा और उसने कहा : "अब मेरे जीने की आशा बंधी है । तब तो वह चक्रवाकी पुनर्जन्म प्राप्त कर श्रेष्ठी की पुत्री ही हुई है। अब आगे इस विषय में क्या करना ? श्रेष्ठी धन के मद से छका हुआ है। अतः उसकी कुंअरी से शादी के लिए जो जो वर प्रस्ताव रखते हैं उनको वह नकारता है। अधिक करुण तो यह है उस बाला के दर्शन पानाभी अशक्य है - किसी अपूर्व दर्शनीय वस्तु की तरह उसके दर्शन पाना दुर्लभ हैं।" तुरंत उनमें से एकने कहा, 'उसकी प्रवृत्ति क्या है वह हमने देखा-जाना। अतः जिस वस्तु का अस्तित्व है उसे प्राप्त करने का उपाय भी होता है । क्रमशः तुम्हारा प्रयोजन सिद्ध होगा ही और सेठ के पास मँगनी के लिए जाना कोई अपराध नहीं । अब तो हम जाकर मँगनी का प्रस्ताव रखेंगे : कहावत है कि 'कन्या अर्थात् सारे समाज की ।' यदि श्रेष्ठी कन्या देने को मना करेगा तो हम उसके घर से बलपूर्वक उठा लायेंगे । तुम्हारे हित के लिए हम चोर बनकर उसका अपहरण कर ले आयेंगे। ___ यह सुनकर तुम्हारे प्रियतमने कहा, 'उसके कारण मेरे अनेक पूर्वजों की परंपरा से रूढ बनी हुई कुलीनता, शील की सुरक्षा आदि गुणों का लोप तुम लोग मत करना । यदि श्रेष्ठी मेरी सारी संपत्ति के बदले में भी कन्या न देगा, तो भले, मैं प्राणत्याग पसंद करूंगा किन्तु कुछ भी अनुचित आचरण तो कदापि नहीं करूंगा। सारसिका का वृत्तांत की समाप्ति तत्पश्चात् मित्रगण उसे घेरकर घर जाने के लिए चल पडे। उसका कुल निश्चित रूप से जान लेने के लिए मैं भी उनके पीछे-पीछे गई।

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