Book Title: Tarangvati
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 67
________________ ५५ तरंगवती काँपने लगा, मुख एवं नयन उद्विग्न हो गये, शोकमिश्रित आँसू ढुलकाता कराहने लगा । इस प्रकार गाढ अनुराग उसका प्रगट दिखाई पड़ा। आँसू से उसकी वाणी अवरुद्ध हो गई । इसलिए वह कुछ प्रत्युत्तर दे न सका। दुःख में आश्वासन पाने के लिए गोद में रखे चित्रपट्ट को उसने आँसुओं से धोया। आँखें रुदन से रक्तिम हो गईं। उसने वह पत्र लिया। भौहें नचाते हुए उसने धीरे-धीरे वह पत्र पढा । पत्र का अर्थ अवगत कर लेने के बाद स्वस्थ होकर प्रसन्न, धीर, गंभीर स्वर में उसने मधुर, स्पष्टार्थी एवं मिताक्षरी वचन मुझे इस प्रकार के कहे : "मैं अधिक क्या कहूँ ? फिर भी थोडे शब्दों में जो एक सत्य बात कहता हूँ वह तुम सुनो : यदि तुम इस वक्त आई न होती तो निश्चय ही कहता हूँ कि मैं जीवित प्राप्त न होता । सुन्दरी, तुम यहाँ ठीक समय पर एवं यथास्थान आ पहुँची, इसके कारण अब उसके संग मेरा जीवन जीवलोक के संपूर्ण सार का अनुभव करेगा। उग्र शरप्रहारक कामदेव ने जब मुझे निढाल बना दिया था तब तुम्हारे इस आगमन रूप स्तंभ का आधार मुझे मिला है।' इसके बाद तुम्हारा चित्रपट्ट देखने से उद्भूत पूर्वभव का स्मरण जो तुमने मुझसे कहा था, वह सब उसने मुझसे कहा । मैंने भी उद्यान स्थित कमलतलैया में. चक्रवाकों को देख तुम्हें हो आये पूर्वभव के स्मरण की बात प्रारंभ से उसे पूरी कही। उसने कहा, 'चित्रपट्ट देखकर मेरे हृदय में पूर्वजन्म के गहरे अनुराग के कारण जब शोक छा गया। अतः सारी रात के भ्रमण के बाद एकाएक प्रिय मित्रों के साथ घर लौय तो उत्सव की समाप्ति होने पर जिस प्रकार इंद्रध्वज टूट कर गिर पड़ता है वैसे मैंने शय्या में जोर से शरीर को पटक दिया । मैं गर्म निःश्वास छोड़ने लगा, शून्यमनस्क बन गया, मदन से मथा जा रहा था, जल से बाहर पड़ी मछली की भाँति मैं शय्या में दुःख से छटपटाने लगा। तिरछी दृष्टि से देखता रह जाता, कभी भौंह उठाकर बकवास करने लगता, घडी में हंसता तो घडी में गाता तो कभी मैं पुनः पुनः रोया करता । मेरे अंग अतिशय काम से उत्तप्त थे । मुझे प्रिय मित्रोंने निढाल देखकर

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