Book Title: Tarangvati
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 71
________________ तरंगवती ५९ तब उचित विनयविवेकविशारद चेटी करकमलों से अपने मस्तक पर अंजलिपुट रचकर मुझे कहने लगी, 'सुंदरी, चिरकाल सेवित मनोरथ पूर्ण करनेवाला, जीवित को अवकाशदायक, संतोष का सत्कार करनेवाला, प्रेमसमागम एवं सुरतप्रवृत्ति का साररूप यह पत्र तुम्हें उसने ही भेजा है, यह बात निश्चित है । प्रियवचनों के अमृतपात्र समान वह पत्र तुम्हारे शोक का विपक्षी मल्ल है इसलिए तुम विषाद न धरो । हे प्रियंगुवर्णी, भीरु, सुरत- सुखदाता प्रियजन का समागम तुम्हें अल्प समय में होगा ।' चेटी का आश्वासन परन्तु इस प्रकार चेटी ने जब कहा, तब हे गृहस्वामिनी, मैंने कहा, 'हे सखी, सुन लो किस कारण से मेरे मन में विषाद उत्पन्न हुआ यह । मुझे लग रहा है कि उसके चित्त में मेरे प्रति स्नेहभाव कुछ मंद पड़ा है, क्योंकि वह मेरा समागम करने के विषय में कालप्रतीक्षा करने को कहता है ।' यह सुनकर हे गृहस्वामिनी, चेटी विनयपूर्वक हाथ जोड़कर फिर मुझसे कहने लगी, 'हे स्वामिनी, तुम से मेरी प्रार्थना है कि तुम मेरी बात समझो । उत्तम पुरुष किस प्रकार व्यवहार करते हैं यह सुनो। कुलीन एवं ज्ञानसम्पन्न होते हुए भी अनुचित आचरण को जो नहीं रोकते उनका लोगों में उपहास होता है । जिस प्रकार उचित उपचार बिना गाय दुहनेवाले को दूध नहीं मिलता, उसी प्रकार संसार में उचित उपाय के बिना अन्य कुछ भी प्राप्त नहीं होता । जो काम पर्याप्त बिना सोच-समझे, उतावली में उचित उपाय किये बिना प्रारंभ किये जाते हैं वे यदि पूरे हो जाये तो भी परिणाम कुछ नहीं दे सकते । जब कि योग्य उपाय से आरंभ किये काम यदि पूर्ण न भी हों तो भी लोग उसके करनेवाले की निंदा - आलोचना नहीं करते । तीक्ष्ण कमबाणों के प्रहार से पीडित वह धीर पुरुष संकट में होते हुए भी अपने कुल एवं वंश का अपयश होने के डर से सन्मार्ग छोडना नहीं चाहता । तरंगवती की कामार्तता " इस प्रकार चेटी के साथ उसकी बातें करने में उसमें रसबस चित्त हुई मुझको पता भी न चला कि कमलों को जगानेवाले सूर्य का अस्त कब हुआ।

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