Book Title: Tarangvati
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

Previous | Next

Page 77
________________ ६५ तरंगवती बसकी बात नहीं । मैं तो तुम्हारा ही अनुसरण करूँगी । तुम कहो वहाँ भाग जाएँ।' तत्पश्चात् मुझे विविध अन्य उपायों को उसने कहा किन्तु मैं कृतनिश्चय हूँ ऐसा जानकर उसने कहा, 'तो हमें जाना ही चाहिए । इसलिए मार्ग में उपयोगी हो सके ऐसा कुछ पाथेय ले लूँ। यह कहकर वह अपने घर के भीतर के भाग में गया । इस ओर मैंने भी चेटी को मेरे आभूषण ले आने के लिए खाना किया। प्रेमियों का पलायन दूती को साथ में लिये बिना प्रयाण दूती हमारे आवास की ओर जाने को तेज रफ्तार से रवाना हुई । इतने में तो मेरा प्रियतम हाथ में रनकरंडक लेकर लौट ।। उसने कहा : 'हे कमलपत्राक्षी ! चलो, अब रुके रहने के लिए समय नहीं। जब तक श्रेष्ठी को पता चले इस बीच तुम भाग सकती हो ।' मैं लज्जित होकर बोली, 'मैंने चेटी को आभूषण ले आने को भेजी है, वह लौट आए तबतक थोडी देर हम रुकें । उसने कहा : सुन्दरी, शास्त्रकारोंने अर्थशास्त्र में कहा है कि दूती सदैव पराभव की दूती ही होती है, वह कार्य सिद्ध करनेवाली नहीं होती । उस दूती द्वारा ही हमारी गुप्त मंत्रणा खुल जाएगी । तुमने उसे क्यों भेजा ? स्त्री का पेट छिछला होता है। अधिक देर तक उसमें रहस्य टिक नहीं पाता । कुसमय में आभूषण लेकर आ रही वह कदाचित पकडी गई तो हमारा भेद खुल जाएगा और हमारी भाग जाने की योजना गुड गोबर हो जाएगी यह निश्चित उसन इसलिए वह पकडी जाए इससे पहले इसी क्षण ही भागना पड़ेगा। समय नष्ट किये बिना चल पड़नेवाले का काम निर्विघ्न बन जाता है । और मैंने मणि, मुक्ता एवं रत्नजडित आभूषण ले लिये हैं । मूल्यवान अन्य सामग्री, मोदक आदि भी लिये हैं । तो चलो हम भागने लगें।' उसने जब इस प्रकार कहा तब उसकी इच्छा के वश होकर, हे गृहस्वामिनी, मैं सारसिका की प्रतीक्षा किये बिना सत्वर रवाना हुई ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140