Book Title: Tarangvati
Author(s): Pritam Singhvi
Publisher: Parshwa International Shaikshanik aur Shodhnishth Pratishthan

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Page 33
________________ तरंगवती श्याम पत्थर की पाट पर शोकविवश हो आँसू बहाती बैठ गई। चेटी द्वारा पूछताछ - अतः दासीने मुझसे पूछा, 'हे स्वामिनी, भोजन यथोचित नहीं पचा क्या? अथवा अतिशय थक गई है क्या ? या फिर कुछ तुम्हें काट गया ?' मेरे आँसू पोंछती वह स्वयं भी मेरे लिए स्नेह के कारण आँसू बहाने लगी; उसने आगे पूछा, 'तुम्हें किस कारण से मूर्छा आई ? मुझे सचसच बात कह, जिससे शीघ्र उपाय किया जाय । विलंब होने पर तुम्हारे शरीर को कदाचित कोई हानि न हो जाए ! कहा जाता है कि व्याधि की, दुर्जन की मैत्री की और दुःशील स्त्री की उपेक्षा करनेवाला बाद में भारी दुखी होता है। प्रमाद सेवन से अनर्थ उपस्थित हो सकता है और विनाश भी। अतः हे सुंदरी, सभी विषय में समय पर उपाय करना यही अच्छा है। इसलिए उपस्थित हुए छोटे-से दोष की ओर भी प्रमाद नहीं करना चाहिए । अन्यथा उचित समय पर जो नाखुन से छिद सकता है उसे समय बीत जाने पर कुल्हाडे से काटना पड़े ऐसा हो जाये ।' . 'सहेली के लिए इस प्रकार के अन्य भी साहजिक पथ्य वचन दासी ने अनुनय विनय करते हुए मुझको कहा । अतः उठ खडी होकर मैने उससे कहा, 'तुम डरो मत, मुझे अजीर्ण नहीं हुआ है, न मैं अति श्रमित हो गई हूँ या न तो मुझे कुछ काय है।' वह बोली, तो फिर ऐसा क्यों हुआ कि उत्सव समाप्त होने पर जिस तरह इन्द्रध्वज की यष्टि जोरसे जमीन पर गिरती है उसी प्रकार तुम मूर्छविकल अंगों सहित धरती पर लुढक पड़ी? हे सुंदरी, मेरी समझ में नहीं आता इसलिए मैं तुम्हें पूछ रही हूँ, अतः तुम अपनी इस दासी को यथातथ पूरी की पूरी बात बताओ। तरंगवती का खुलासा तब हे गृहस्वामिनी, उस मरकतमणि के गृह समान कदलीगृह में शान्ति से बैठकर मैंने सारसिका को मधुर वचनों में यह बात बताई । 'हे सखी, मूच्छित हो मैं किस कारण लुढक पड़ी, इसकी कथा बहुत लम्बी है । मैं तुम्हें थोडे में कहकर सुनाती हूँ। सुनो, तुम और मैं एकसाथ जन्मी, एक साथ धूल में खेलीं और साथ-संगाथ में ही हमने सुख-दुःख भुगते हैं। और तुम तो मेरा सारा भेद

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