Book Title: Swatantravachanamrutam Author(s): Kanaksen Acharya, Suvidhisagar Maharaj Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal View full book textPage 8
________________ Poes-ms-on-mokirtiजाताना -meese-wester-ger H अवश्य करते हैं। अप्रकाशित ग्रन्थों का प्रकाशन कराना आपका : येय है। अबतक संघ से वैरग्गसार, दबसंग्गह आदि ग्रन्थों का प्रकाशन हो चुका है जो कि मात्र पाण्डुलिपियों में ही उपलब्ध थे। मिथ्यात्वनिषेध, श्रीपुराण, व्रतफलम्, सामायिक पाठ, स्वतन्त्रवचनामृतम् आदि ग्रन्थ भी प्रकाशनाधीन हैं । परिचय के लेखन तक आप ३ मुनि, ९ आर्यिका, एक शुल्लक एवं एक क्षुल्लिका दीक्षा दे चुके हैं। अबतक आपके सानिध य में १ मुनि व ५ आर्यिकाओं की सल्लेखना हो चुकी है। इतने अपार वैभव के धनी होकर भी आपको अहंकार स्पर्श तक न कर पाया। आपकी चर्या सहज है और आपकी चर्चा अतिमार्मिक है। आपकी स्पष्टवादिता और सरलता ही ऐसा वशीकरण मन्त्र है कि श्रावकवर्ग आपके पास खिंधा चला आता है। आपके कारण जैनों का धर्मध्वज गर्वयुक्त होकर लहरा रहा है - वह ऐसा ही लहराता रहें, आपकी धर्मसाधना व ज्ञान सा ना दिन दूगुणी और रात चौगुणी बढ़ती रहें, आपका शिष्य-परिवार दिनों-दिन विकसित होता रहें, आपको स्वास्थ्य-ऐश्वर्य की प्राप्ति हों, आपके द्वारा नित-नवीन अन्यों का अनुवाद होकर प्रकाशन होता रहें, आपका नाम साधकशिष्यों के लिए आदर्श बनें, आपका यश दिग्दिगन्त में फैलता रहें तथा आप दीर्घायुषी बनकर निरन्तर आए. यात्मिक प्रगति करते रहें यही हम सबकी मंगल कामना है।Page Navigation
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