Book Title: Swatantravachanamrutam
Author(s): Kanaksen Acharya, Suvidhisagar Maharaj
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 21
________________ pwwer-womemasme रवतन्नतजामृतम्:0-meenawareness, तु किं न निर्मि मीते। अथ जन्मान्तरो पाजित तत्तत्तदीयशुभाशुभकर्मप्रेरितः सन् तथा करोतीति, दत्तस्तर्हि । स्ववशत्वाय जलाञ्जलिः। कर्मजन्ये च त्रिभुवनवैचित्र्ये शिपिविष्ट हेतुकविष्टप सृष्टिकल्पनायाः कष्टैकफलत्वादस्मन्मतमेवाझीकृतं प्रेक्षावता।। तथा चायातोऽयं घटकुळ्यां प्रभातम् इति न्यायः । किञ्च, । प्राणिनां धर्माधर्मापेक्षमाणश्चेदयं सृजति, प्राप्तं तर्हि यदयमपेक्षते तन्न करोतीति। न हि कुलालो दण्डादि करोति। एवं कर्मापेक्षश्चेदीश्वरो जगत्कारणं स्यात् तर्हि कर्मणीश्वस्त्वम्, ईश्वरोऽनीश्वरः स्यादीति। किंञ्च, प्रेक्षावतां प्रातः स्वार्थकरुणाभ्यां व्याप्ता। ततः। चायं जगत्सर्गे व्याप्रियते स्वार्थात्, कारुण्याद् वा? न तावत् । है स्वार्थात् तस्य कृतकृत्यत्वात् । न च कारुण्यात्, परदुःख। । प्रहाणेच्छा हि कारुण्यम। ततः प्राक् सज्जीवा नामिन्द्रिय शरीरविषयानुत्पत्तौ दुःखाभावेन कस्य प्रहाणेच्छा कारुण्यम्।। सर्गोत्तरकाले तु दुःखिनोऽवलोक्यकारण्याभ्युपगमे दुरुत्तरमि। - तरेतराश्रयम्, कारुण्येन सृष्टिः सृष्ट्या च कारुण्यम् । इति । नास्य जगत्कर्तुत्वं कथमपि सिद्ध्यति। अर्थात् :- ईश्वर ने शरीर धारण करके जगत् को बनाया है, अथवा शरीररहित । होकर? यदि ईश्वर ने शरीर धारण करके जगत् को बनाया है, तो वह शरीर हम लोगों की तरह दृश्य था अथवा पिशाच आदि की तरह अदृश्य ? यदि वह शरीर हमारी तरह दृश्य था, तो इसमें प्रत्यक्ष से बाधा आती है। हमें ऐसा कोई दृश्य शरीर वाला ईश्वर दिखाई नहीं देता जो घास, वृक्ष, इन्द्रधनुष, बादल आदि की ! । सृष्टि करता हो। इसलिये 'जहाँ-जहाँ कार्यत्व है वहाँ-वहाँ सशरीरकर्तृत्व है' यह। व्याप्ति नहीं बनती। कार्यत्व हेतु यहाँ साधारण अनैकान्तिक हेत्वाभास है। यदि कहो कि ईश्वर पिशाच आदि के समान अदृश्य शरीर से जगत् की। सृष्टि करता है तो इस शरीर के अदृश्य होने में ईश्वर का माहात्म्यविशेष कारण है, . SUPREGARD1

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