Book Title: Swatantravachanamrutam
Author(s): Kanaksen Acharya, Suvidhisagar Maharaj
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 37
________________ @redcon, cha रखतानामृतम् २३ आत्मा स्व-सम्वेदन ज्ञान के व्दारा व्यक्त होता है और परभावों की अपेक्षा से अवक्तव्य भी है । आचार्य श्री अकलंक देव ने लिखा है नावक्तव्यः स्वरूपाद्यैर्निर्वाच्यः परभावतः । तस्मान्नैकान्ततो वाथ्यो नापि वाचामगोचरः ।। - ( स्वरूप सम्बोधन - ७) अर्थात् :- आत्मा स्वरूप आदि की अपेक्षा से अवक्तव्य नहीं है। अन्य अविवक्षित धर्मों की अपेक्षा आत्मा अवक्तव्य है। इसकारण आत्मा एकान्त से यानि सर्वथा न तो वक्तव्य है और न सर्वथा अवक्तव्य है । टीकाकार ने ग्रन्थकार के आशय को स्पष्ट करते हुए लिखा स एवात्मा एकानेकरूपः । आत्मा स्वरूपाद्यैः स्वद्रव्यस्वक्षेत्र- स्वकाल -स्वभावरूप- स्वरूपादिचतुष्टयेन वक्तव्यः । आत्मादिशब्दै वध्यः । परभावतः परद्रव्य- परक्षेत्रपरकाल - परभावरूपादि-चतुष्टयेन निर्वाच्यः आत्मादि शब्दैरवाच्यः । तस्मात् ततः कारणात् एकान्ततः सर्वप्रकारेण वाच्यः वचनविषयो न भवति । वाचां वचनानां अगोचरः अविषयः नापि न स्यात् । स्वरूपादिचतुष्टयेन वाच्यः, पररूपादिचतुष्टयेना - वाच्यो भवतीति भावार्थ: ।।७।। अर्थात् :- आत्मा अपने स्वरूप की अपेक्षा कहा जाता है। अपने द्रव्य, अपने क्षेत्र, अपने काल और भाव रूप से आत्मा का शब्दों द्वारा कथन किया जाता है। . इस कारण आत्मा अपने स्वरूप द्रव्य क्षेत्र काल भाव की अपेक्षा वक्तव्य है । परन्तु वह आत्मा अन्य पुद्गल आदि पदार्थों की अपेक्षा वक्तव्य नहीं है, क्योंकि अन्य पदार्थों के द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से आत्मा का स्वरूप मित्र है, उस अपेक्षा से आत्मा अवक्तव्य है। इसतरह आत्मा न तो एकान्त से सर्वथा वक्तव्य है और न सर्वथा अवक्तव्य है। यानि वह कथंचित् वक्तव्य हैं और कथंचित् अवक्तव्य है। ग्राह्य शब्द का अर्थ ग्रहण करने के योग्य है ! आत्मा स्यात् ग्राह्य और स्यात् अग्राह्य है ।

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