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sen-andतयारना नाम :acame-Amree
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12:- श्रुतज्ञान के विकल्प को जय कहते हैं । (आलापपद्धति) 23:- नाना स्वभावों से हटाकर वस्तु को एक स्वभाव में जो प्राप्त है।
करावे, उसे नय कहते हैं । (आलापपद्धति) 14:- जो अपने को और अर्थ को एकदेश जानता है, उसे नय कहते है।
हैं । (श्लोकवार्तिक) 16:- प्रमाण के व्दारा प्रकाशित किये गये पदार्थ का जो विशेषरूप! से निश्चय करावे, उसे नय कहते हैं । (राजवार्तिक)
नय के मुरगन- दो मे किये गये हैं ।। द्रव्यार्थिक नय :- जो जय द्रव्य की प्रधानता से वस्तु को ग्रहण । 1 करता है, उसे द्रव्यार्थिक जय कहते हैं । इस जय को भूतार्थिक भी।
कहा जाता है, क्योंकि भूत का अर्थ द्रव्य होता है । भूत यानि द्रव्य । है प्रयोजन जिसका, उस नय को भूतार्थिक या द्रव्यार्थिक कहते हैं।। 1. पर्यायार्थिक नय :- जो नय पर्याय की प्रधानता से वस्तु को ।
ग्रहण करता है, उसे पर्यायार्थिक नय कहते हैं । इस नय को। अभूतार्थिक भी कहा जाता है, क्योंकि अभूत का अर्थ कथंचित् द्रव्य । अर्थात् पर्याय होता है । अभूत यानि पर्याय है प्रयोजन जिसका, उस। नय को अभूतार्थिक या पर्यायार्थिक कहते हैं।
जय के सात भेद किये गये हैं । उनका नामोल्ल्लेख करते। है हुए आचार्य श्री उमास्वामी जी महाराज लिखते हैं - है नैगमसंग्रहव्यवहार सूत्रशब्दसमभिरूठेवंभूता नयाः।
(तत्त्वार्थसूत्र-१/३३) अर्यात् :- नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूड़ और एवंभूत ये।। सात नय हैं। नैगमनय : जो नय अनिष्पन्न अर्थ के संकल्प मात्र को ग्रहण करता है है वह नैगमनय है। संग्राहलय : जो नय अपनी जाति का विरोध न करता हआ एकपने से समस्त पदार्थों को पाहण करता है, उसे संग्रहनय कहते हैं। व्यवहारनय : जो नय संग्रहनय के द्वारा ग्रहण किये हुए पदार्थो। को विधिपूर्वक भेद करता है वह व्यवहारनय है। अजुसूत्रनय : जो सिर्फ वर्तमान काल के पदार्थो को ग्रहण करे,
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