Book Title: Swatantravachanamrutam
Author(s): Kanaksen Acharya, Suvidhisagar Maharaj
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 43
________________ स्वतजनजागृतग सप्तभंगी के द्वारा वस्तुतत्त्व को सरलतापूर्वक समझा जा सकता है । सप्तभंगी शब्द को परिभाषित करते हुए आचार्य श्री मल्लिषेण जी लिखते हैं एकत्र जीवादौ वस्तुनि एकैकसत्वादि धर्मविषय प्रश्नवशादविरोधेन प्रत्यक्षादिबाधापरिहारेण पृथग्भूतयोः समुदितयोश्च विधिनिषेधयोः पर्यालोचनया कृत्वा स्याच्छब्दलाञ्छितो वक्ष्यमाणैः सप्तभिः प्रकारैर्वचनविन्यासः सप्तभङ्गीति गीयते । - (स्याव्दाद मंजरी :- २२) अर्थात् :- जीवादि पदार्थों में अस्तित्वादि धर्मों के विषय में प्रश्न उपस्थित करने पर विरोधरहित, प्रत्यक्षादि से अविरुद्ध अलग-अलग अथवा सम्मिलित विधि और निषेध धर्मों के विचारपूर्वक स्यात् शब्द से युक्त सात प्रकार की बचनरचना को सप्तभंगी कहते हैं । वे सात भंग निम्नप्रकार से हैं । 1:- स्यादस्ति : अस्तित्वरूप ही है 2:- स्यान्नास्ति : नास्तित्वरूप ही है । 3:- स्यादस्तिनास्ति : दोनों धर्मो की अपेक्षा से ही है - प्रत्येक वस्तु विधिधर्म की अपेक्षा से कथंचित् 500-1000000000 प्रत्येक वस्तु निषेधधर्म की अपेक्षा से कथंचित् प्रत्येक वस्तु क्रम से विधि और निषेध इन कथंचित् अस्तित्व और नास्तित्व दोनों रूप 4:- स्यादवक्तव्य : प्रत्येक वस्तु एक साथ विधि और निषेधरूप धर्मों की अपेक्षा से अवक्तव्य ही है । 5:- स्यादस्ति- अवक्तव्य : प्रत्येक वस्तु विधि तथा एक साथ विधि - निषेध रूप धर्मो की अपेक्षा से कथंचित् अस्तित्व और अवक्तव्यरूप ही है । 6:- स्यान्नास्ति - अवक्तव्य : प्रत्येक वस्तु निषेध तथा एक साथ विधि और निषेधरूप धर्मो की अपेक्षा से कथंचित् नास्तित्व और अवक्तव्यरूप ही है ।

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