Book Title: Swatantravachanamrutam
Author(s): Kanaksen Acharya, Suvidhisagar Maharaj
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

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Page 53
________________ ANDRDOI wwanimoomरवतन्नायनान्मृतम् mmms च रसायनक्रिया मात्रादेत. हात् श्रद्धा । य र प्रद्धान! है मात्रादेव, रसायनज्ञानपूर्वीक्रियासेवनाभावात् । अतो रसायनमान ! श्रद्धानक्रियासेवनोपेतस्य तत्फलेनाभिसम्बन्ध, इति निःप्रद्धन्छ। - मेतत्। तथा न मोक्षमार्गज्ञानादेव मोक्षणाभिसम्बन्धोई दर्शनधारित्राभावात् । न च श्रद्धानादेव, मोक्षमार्गक्षान! पूर्वक्रियानुष्ठानाभावात् । न ध क्रियामात्रादेव, बान -१ अद्धानाभावात् । यतः क्रिया ज्ञानश्रद्धानरहिता निःफलेति। यदि च बानमात्रादेव क्वचिदर्थसिद्धिदृष्टा साभिधीयताम् ? न पासावस्ति । अतो मोक्षमार्गत्रितयकल्पना ज्यायसीति। (राजवार्तिकः-१/१/४६) अर्थात् :- रसायन के समान सम्यग्दर्शनादि तीनों में अविनाभाव सम्बन्ध है, नान्तरीयक (तीनों के साथ अविनाभाव) होने से। तीनों की समानता के बिना मोक्ष । की प्राप्ति नहीं हो सकती है। जैसे रसायन के ज्ञान मात्र से रसायनफल अर्थात् । रोगनिवृत्ति नहीं हो सकती, क्योंकि इसमें रसायनश्रद्धान और क्रिया का अभाव है। । यदि किसी ने रसायन के ज्ञान मात्र से रसायनफल-आरोग्य देखा हो तो बतावे? | । परन्तु रसायनज्ञान मात्र से आरोग्य फल मिलता नहीं है, न रसायन की क्रिया । (अपथ्यत्यागादि) मात्र से रोगनिवृत्ति होती है, क्योंकि इसमें रसायन के आरोग्यता गुण का श्रद्धान और ज्ञान का अभाव है तथा ज्ञानपूर्वक क्रिया से रसायन का सेवन किये बिना केवल श्रद्धान मात्र से आरोग्यता नहीं मिल सकती। इसलिए पूर्णफल । ३ की प्राप्ति के लिये रसायन का विश्वास, ज्ञान और उसका सेवन आवश्यक ही है। । जिस प्रकार यह विवाद रहित है, उसी प्रकार दर्शन और चरित्र के अभाव में सिर्फ । है ज्ञान मात्र से मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती। मोक्षमार्ग के ज्ञान और तदनुरूप है क्रिया के अभाव में सिर्फ श्रद्धान मात्र से मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता और न । ज्ञान-श्रद्धानशून्य क्रिया मात्र से मुक्ति प्राप्त हो सकती है, क्योंकि ज्ञान-श्रद्धानरहित क्रिया निष्फल होती है। यदि ज्ञानमात्र से ही क्वचिद् अर्थसिद्धि देखी गई हो तो कहो। परन्तु । ज्ञानमात्र से अर्थ की सिद्धि दृष्टिगोचर नहीं होती है। अतः मोक्षमार्ग की कल्पना तीनों से करना ही श्रेष्ट है। इसतरह रत्नत्रय ही मोक्षमार्ग है, यह बात सिद्ध हुई ।

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