Book Title: Swatantravachanamrutam
Author(s): Kanaksen Acharya, Suvidhisagar Maharaj
Publisher: Bharatkumar Indarchand Papdiwal

View full book text
Previous | Next

Page 41
________________ POETROO Postan-wa000- स्वतनमणामृतम-commer ce है उसे ऋजुसूत्र नय कहते हैं। शब्दनय : जो नय लिम, संख्या, कारक आदि के व्यभिचार को दूर करता है वह शब्दनय है। यह नय लियादि के भेद से पदार्थ को भेदरूप ग्रहण करता है। समभिरुवनय : जो नय नाना अर्थों का उल्लंघनकर एक अर्थ को रूढ़ि से ग्रहण करता है, उसे समभिरूढ़नय कहते हैं। प्रत्यक्षं स्पष्ट निर्भासं, परोक्षं विशदेतरम् । तनामा विदुस्तज्ञः, स्मार्थविनिश्चयात् ।।२३।। अर्थ : स्पष्ट प्रतिभास को प्रत्यक्ष कहते हैं । अप्रत्यक्ष प्रतिभास को परोक्ष कहते हैं । वह प्रमाण स्व और पर अर्थ का विनिश्चय करने । याला है ऐसा बुद्धिमानों को जानना चाहिये । विशेपार्थ : जो स्य और परद्रव्य का विनिश्चय करावे, उसे प्रमाण कहते। हैहैं 1 प्र यानि परम, श्रेष्ठ या समीचीन और मान यानि ज्ञान । प्रमाण का अर्थ है - सम्यग्ज्ञान । प्रमाण शब्द को परिभाषित करते हुए आचार्य श्री पूज्यपाद जी ! लिखते हैं - प्रमिणोति प्रमीयतेऽनेन प्रमितिमात्र वा प्रमाणम् । (सर्वार्थसिद्धि :- १/१०)| अर्थात् :- जो अच्छीतरह जानता है, जिसके व्दारा अच्छीतरह जाना जाता है। अथवा जानना मात्र ही प्रमाण है । प्रमाण के प्रत्यक्ष और परोक्ष ये दो भेद हैं । प्रत्यक्षप्रमाण को परिभाषित करते हुए आचार्य श्री माणिक्यनन्दि जी लिखते हैं - विशदं प्रत्यक्षम् । (परीक्षामुख :- २/१)

Loading...

Page Navigation
1 ... 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84