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00-worwar नागत -moon-wesom-agram द्रष्टा ज्ञाता प्रभुः कर्ता, भोक्ता चेति गुणी च सः ।।
विम्रसोर्ध्वगतिः ध्रौव्यव्ययोत्पत्तियुगङ्गमः ।।१०।1 अर्थ :
वह आत्मा द्रष्टा, ज्ञाता, प्रभु, कर्त्ता, भोक्ता, गुणी, स्वभाव । से ऊर्ध्वगति वाला तथा प्रौव्य-व्यय और उत्पाद से संयुक्त है । विशेषार्थ :
आत्मा अनन्त गुणों का पिण्ड है । उनमें से कुछ गुणों को । प्रधान करके आत्मा के स्वरूप को प्रस्तुत कारिका के माध्यम से समझाया जा रहा है ।
इस कारिका में आत्मा के आट गुणों का व्याख्यान किया गया है । :- सृष्ट' : आदना माव की अपेक्षा से तीन लोक को देखने वाला। होने से दृष्ट है । 2:- हाता : आत्मा स्वभाव की अपेक्षा से तीन लोक को जानने वाला होने से झाता है । 3:- प्रभु : आत्मा स्वभाव की अपेक्षा से तीन लोक का स्वामी अथवा अपने समस्त स्वाभाविक गुर्गों का स्वामी होने से प्रभु है । 4- कर्त्ता : शुद्धनिश्चयनय से आत्मा अपने शुद्धभावों का, है अशुद्धनिश्चयनय से आत्मा भावकर्मों का व व्यवहार नय से आत्मा द्रव्यकों का कर्ता है । 15:- भोक्ता : निश्चयनय से आत्मा चैतन्यभावों का और व्यवहारनय
से कृतकों का फल भोगने वाला होने से भोक्ता है । 16:- गुणी : अनन्त गुणों से सम्पन्न होने से आत्मा को गुणी कहते
17: स्वभाव से ऊर्ध्वगति वाला : जीव की स्वाभाविक गति ऊर्ध्व
गमन करने की है । मुक्तिधाम को प्राप्त करते समय जीव ऊर्ध्वगति
से गमन करता है । 18: उत्पाद, व्यय और धौव्य से युक्त : आत्मा में नित्य नवीन
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